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________________ १२ पुरोवाक् जापान से तथा मोतीलाल बनारसीदास से छपा है। मूल प्राकृत शब्द, उसका संस्कृत रूपान्तरण तथा तीन भाषाओं में अर्थ होने के कारण इसका आकार कुछ बड़ा हो गया है। ५. अल्पपरिचित सैद्धान्तिक शब्दकोश इसके प्रणेता हैं-सागरानन्दसूरि। यह पांच भागों में सन् १९५४ से १९७९ के मध्य प्रकाशित हुआ था। इसमें मूल १२५६ पृष्ठ हैं, जिनमें विशेष रूप से उन्हीं शब्दों को लिया है जो जैनदर्शन के पारिभाषिक शब्द हैं । उनका चूणि, टीका आदि में उपलब्ध अर्थ भी दिया गया है। इनमें ४५ आगमों तथा अन्य कुछेक ग्रंथों के शब्द संगहीत हैं। अन्त में ५६ पृष्ठों के परिशिष्ट में आचार्य हेमचन्द्र की देशीनाममाला के शब्द अकारादि अनुक्रम में अर्थ-सहित दिये गए हैं। ६. अभिधान राजेन्द्रकोश यह श्वेताम्बर आगम साहित्य का एक आकर कोश है। इसके निर्माता हैं-विजयराजेन्द्रसूरी और संपादक हैं-उन्हीं के दो शिष्य दीपविजय और यतीन्द्र विजय । इसका प्रकाशन सात भागों में सन् १९१०-१९२४ के मध्य नौ हजार पृष्ठों में हुआ। कोशकार ने लगभग सौ ग्रन्थों का इसमें उपयोग किया है। इस कोश का निर्माण यदि आज होता तो यह कोश और अधिक वैज्ञानिकता लिए हमारे सामने आता। इसका निर्माण विषयों के आधार पर हुआ है, लेकिन वर्तमान में उनके प्रमाण यथार्थ रूप में उपलब्ध न होने के कारण कोश की उपयोगिता में कमी अनुभव होती है। ७. जैनलक्षणावलि (जैन पारिभाषिक शब्दकोश) यह एक महत्त्वपूर्ण कोश है, जिसमें जैनधर्म-सिद्धांत के पारिभाषिक शब्दों की परिभाषाएं दो गई हैं। इसमें दिगम्बर तथा श्वेताम्बरों के ४०० ग्रन्थों से शब्द संग्रहीत हैं। इसके संपादक हैं -बालचंद्र सिद्धांतशास्त्री और यह वीर सेवा मंदिर से सन् १९७२ में प्रकाशित हुआ है। ८. जैनेन्द्र सिद्धांतकोश चार भागों में प्रकाशित इस कोश में शब्दों के अर्थ के साथ-साथ उनसे संबंधित विषयों का ससंदर्भ समावेश है। यह केवल दिगम्बर साहित्य के आधार पर निर्मित है। इसके कर्ता हैं-क्षुल्लक जिनेन्द्रवर्णी और प्रणयन काल है--सन् १९७० । ९. डिक्शनरी ऑफ वी प्राकृत लेंग्वेजेज ___ इस कोश का निर्माण पूना में डा० ए. एम. घाटगे के निर्देशन में भंडारकर ओरियन्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट के अन्तर्गत हो रहा है। इसमें लगभग ५०० ग्रन्थों के शब्द ससंदर्भ लिए गए हैं। शब्दों का अंग्रेजी भाषा में अर्थ किया गया है। यह विशाल कोशग्रन्थ अपने आप में एक शलाकाग्रन्थ होगा। इसके दो लघ भाग प्रकाशित हो चके हैं, शेष प्रकाशाधीन हैं। १०. आगम शब्दकोश प्रस्तुत कोश में ग्यारह अंगों (आचारांग, सूत्रकृतांग आदि) के शब्द संग्रहीत हैं। प्रत्येक शब्द का संस्कृत रूपांतरण और उसके सभी प्रमाण-स्थल निर्दिष्ट हैं। इसमें तत्सम, तद्भव और देशी-तीनों प्रकार के शब्द हैं। ८५० पृष्ठों का यह कोश अंग आगमों में अनुसंधान करने वालों के लिए बहुत उपयोगी है क्योंकि ग्यारह अंगों में एक शब्द कहां-कहां आया है, उसके समस्त संदर्भ-स्थल एक ही स्थान पर प्राप्त हो जाते हैं। विभिन्न आगमों के शब्द-चयन पृथक-पृथक मुनियों ने किए और उनका समग्रता से आकलन मुनि श्रीचन्द 'कमल' ने किया। इसका प्रकाशन वर्ष है सन् १९८० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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