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________________ भरह (१२६५) अनिधानराजेन्डः। __न किंचि दुक्खं उबसग्गया वि। सुबट्टई दक्खमई कलतं, करति सव्वं समरे विनूणं, सुसोयबंधं अवलं अकं ॥ २३१ ॥ प्रसस्थमझे हवाई सया वि ॥ २१६॥ अणेगथंभूसिय चारुग्म्म. मणि पहाणं रयणं धरतो, सुहायेर्स सुहनिगम च । अवडियो जोवणकेसरोमो। पाएसो चक्किवरस्स तत्तो, न होइ होई भयवंतगुनो, मिधूर पुग्विजतडेण तेहिं ।। २३२॥ घेतूण हत्थेण नराहिवो तं ॥ २२० । सुसंकमेहि अह उतरेणं, गयस्स कुंभीएँ उ दाहिणाए, कमेण पतस्स अहुत्तरे वि । खिवित सारं भग्हो नरिंदो। कुंचारवं चारुसरं करते, हारऽद्धहारप्पविरायवच्छो, ठिए सठाणे सुवरक्तवाडे ॥ २३३॥ सुराहिरायस्समरिद्धिजुत्तो ॥ २२१।। तत्तो सन्नो परिनीहरेह, उज्जोइयाऽऽसो य मणिप्पहाए, श्रबोडिया उत्तरभारहम्मि । चक्काणुभग्गेण पया दित्तो। चिलाइया नेसु पयंडदंडा, रायासहस्सेहिऽणुजायमग्गो, श्रडा य दित्ता घणधमजता ॥ २३४।। समथलेप्माणुय प्रो विसाभो ॥२२२ ।। सुवरणमाणिकहिरममा, उकिट्ठवंदीजयसिंहनाय चित्थिनपासायधिसाल लेना। झकारभेरीरवरिया:सो। विसालले जासण लावएज्जा, अईइ दारेण उ दक्षिणेणं. उइनजोहा यवाहणटा ॥२३५॥ महज्जुई से तिमिसंगुहाए ॥ २२३ ॥ सुदंसणा सिंधुवारसारा, पमाणो से चउरंगुन जं, गलासोभयसत्तसारा। विसावहारी परमं पगिटुं । सूरा दढा वीरपकमा य, उज्जोयई बारस जोयणाई. श्ररोगसंगामसरसु लद्धा॥२३६॥ चंदो व राई समस्थसेनं ॥ २२४ ॥ माहप्पविक्खायबला दुजोहा, तो य नेसिविसप पविष्टुं । न तत्थ सूरो न ससी न अम्गी, बलं करे चक्कितणं सयाइ, पणासई से तिमिसंधयारं। उबट्टठाण अवलोइऊण ॥२३७॥ तं कामिणी दिवजुई गहाय, झायंति चितोबगया भणति, पुब्बिल पच्छिल्लयसेन्नयस्त ॥ २२५ ॥ क एस अप्पस्थिय पत्थए सो। पगासहेडं तिमिसग्गुहाए, निहीण पुने य दुरंतते, एगूणपणाससुमंडलाई। अलक्खये काल कयंतगामी ॥ २३८ ॥ मायामविक्खभपमाणणेण, एवंविहोपद्दवकारि अम्हं, घणूण पंचस्त य माणयाणि ॥ २२६ ॥ - अनन्ननाणवणता य तत्थ । सुकोसाई चंदसमे य चक्के, सब्वे गश्रा से मिलिया चिलाया, सुचपकनेमिस्समसब्वभावो। पासित्तु एवं रुसिया भणंति ॥ २३६॥ सुभित्तिपजायण अंतरे य. जहा न आगच्छद एस भूओ, देदिप्यमाणे लहुसु पवित्तो॥२२७ ॥ तहा पयत्तं करिमो ससेना। सलाहमाणे लिहेयमाणे, अग्गाणि पंतो पहरंति झत्ति, सुई सुरेणं विसई पहिडे । चापण मेहब्भवयं व सिन्नं ॥ २४०॥ जा चक्कयट्टी वरमंडलाई, दिसे दिसिं चककतणं तु नीयं, तहेष चिटुंति गुहासया वि ॥ २२॥ तो सुसेण रगणे अहस्से। पालोय उजायभुजो गुहा सा, रुहेर खग्ग रया गहिनु, जाया पभाषेण सुमंडलाणं। चिलाइए ता सरासुरुत्ते ॥ २४१ ॥ तीसे गुहाए बहुमज्झदे से, भीया पलाइत्तु पहारभग्गा, जलाइ उम्मग्गनिमग्ग अस्थि ॥२६॥ उध्यिग्गदीणा विमणा अथामा। तिणं व कटुं गयअस्सजोह, गया सइंसिंधुतडे विसाले, पहाणमाई पदमा तलम्मि। मिलिनु सवेगपए पसत्थे ॥ २४२ ॥ पडेड बीयाउ तलम्भि नेह, सुवालुगासंथाए रुइंति, तो दो वि पुब्बिलयनिक्खुडाभो ॥२३०॥ पंगेरिह अटमभत्तियं तु। गया उजा सिंधुनई समुहे. उत्ताणगा अंबरचीरधारी, तेसिंतरिठ्ठो पकरेइ हिट्ठो। मेहामुहाणं कुलदेवयाणं ॥२४३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016045
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1652
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size60 MB
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