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________________ ( १३६८ ) अभिधानराजेन्द्रः । भददि (ए) जद्द वज्यंति जिया इह, कम्मेद्दि जहा व मुच्वंति ॥ २३ ॥ यसो उ भद्दनंदी, नंदियहियो गहिन्तु जिनपासे । सम्मत्तमूलमणई, गिपि समिती ॥ २४ ॥ अपुच्छ सिरियाधम- सामी सामि महावी पहु ! एस भद्दनंदी, कुमरो श्रमरो इव सुरूवो ॥ २५ ॥ सोमु य सोममुखी, सोग्यनिधी व सनजो सापि विवेसे सम्मओ के कम्मे ॥ २५ ॥ जंपर जिणो विदेहे. आसी पुंडरीगिणीइ नयरीए । जिओ नाम कुमारी, सर्जकुमारो इध सुरूवी ॥ २७ ॥ सो कविसमय गुरुहरूपसोहं । जुगबाहुजियामाई मिलाकर नियतं ॥ २८ ॥ तो झत्ति चलचित्ताऽऽसो गयो समुहं सगटुपए । तिपयाहिसं करिता, बंद तं भूमिमिलियसिरो ॥ २६ ॥ भण्य सामिय ! आहा-रगहणओ मह करेसु सुपसायं । दव्वाइस उवउत्तो, जिणो वि पाणी पसारे ॥ ३० ॥ असी विजयकुमारी हरिहुलमंचो विष्कार ॥ ३१ ॥ आहारण परे पडिलाइ परममति। saroj अप्पा, मनतो मणवइतरहिं ॥ ३२ ॥ पितं तिथि दाई लाई पडिला पासफलमे २३ ॥ पुनारबंध पुनं, उत्तमभोगा य सुलह बोद्दित्तं । मा. को परिसोय संसारो ॥ ३४ ॥ पाउम्भूषा पंचवाई। २५ ॥ पहाडदूडीओ मुक्का हिरनबुडी, बुट्ठी कुसुमाण पंचवन्नाणं । गग अदद ३६ ॥ रायप्पमुद्दो लोओ, मिलिश्रो बहुश्रा य तत्थ तेणावि । सो विजश्रो विजियमणो, पसंसिश्री हरिसियमयेण ॥ ३७ ॥ भुतूण बहुं कालं विजओ भोष समाहिणा मरिउं ॥ लोयपियाइगुणजुओ, जाओ सो भद्दनंदिति ॥ ३८ ॥ दरमुद किसी गिरिदी सम भद्द जियो मिस्सिर समयस्मि समादिश्रो सम्म||३६|| विवर अन्नत्थ पहू, कुमरो वि हु कुणइ सवयं भ्रम्मं । ऋणुकूलविणीयसुध - म्म सीलपरिवारपरियरिश्रो ॥ ४० ॥ श्रह श्रन्नया कयाई, अद्भुमिमाईसु पञ्चदियहेतु | ं पोसहसा पासधारभूमी ॥ ४१ ॥ पडिले हिउं पमज्जिय, रहउं संधारयं च दग्भस्त । तम्मि दुरुढो अट्टम भत्तजयं पोसहं कुरु ॥ ४२ ॥ कुमरो जित अमभपरिणमंत्रि पुस्वारकाले चितिमेवं समादणे ॥ ४३ ॥ धन्ना ते गामपुरा, धन्ना ते खेडकब्बडमडंबा । मिच्छ्ततिमिरसुरो, पीरजियो विहर जन्य ॥ ४४ ॥ नेशिया, रामाणो रायपुमाईया 1 वीर जिणदेसणं निसु णिऊण गिराहति जे चरणं ॥ ४५ ॥ इत्थं पि जइ समिज्जा, वीरो तेल्लुक्कबंधवो अज्ज । सोय पदस्य संजनं रमे ॥ ४६ ॥ तस्स भत्थं नाउं गोले वीरो समोसढो तत्थ । यो दिदि हुनत्थं नियो पत्ती ॥ ४७ ॥ Jain Education International भइदि (णू) नमिष उपविट्ठा, उचिषा नदिमरवरा तो नवजलहर गज्जिय-गहिरसरो भगइ इय सामी ॥ ४८ भव्वा ! भवारहट्टे, कम्मजलं गद्दिय अविरहधडीहिं । चदुद्दविवलि, मा सिंचह जीवमंडवर ॥ ४६ ॥ तं विष निवती, सगिहे कुमरो उप पज्जं गिरिहस्तं पियरो पुच्छिय परं सामि ! ॥ ५० ॥ मा पडिबंधं कुण, ति सामिया सो पर्यदिश्रो तसो । पत्तो पिऊण पाले, नमिऊण कयंजली भ६ ॥ ५१ ॥ वीरसगाले रम्मो, धम्मो अज्जब ! ताय ! निसुओ मे । सद्दहिय, पत्तिनो रो-इनो य सो इलिनो य मए ॥ ५२ ॥ विडिया भवंति तं बच्छ धनकयी। ! पपिए जंपर कुमरो ॥ ५३ ।। तुम्मे । सोम देवी गया मुं ॥ ५७॥ पणीकया च कलुणं, विलवंती भगइ दीणवयणमिणं । जाय ! तुमं मद्द जाओ, बहुओ वाइयसहस्सेहिं ॥ ५५ ॥ ताकद मणाई. पुराय मुकुं गद्देसि साम ! सोयभर भरियद्दियया-६ वचिही मज्झ जीयं पि ॥ ५६ ॥ तथा जाता। पच्छा कालगहिं, अम्देहिं तुमं गद्दिज्ज वयं ॥ ५७ ॥ कुमारःसससमभिभ्रूण, बिजुलपावले सुमिसरिले । मणुयाण जीविए मरणमग्गया पत्थश्रो वा वि ॥ ५८ ॥ को जागइ कस्ल कहं, दोही बोही सुदुलहो एस ? । ता धरिय धीरिमार, अंब ! तपऽहं विमुक्त्तन्वो ॥ ५६ ॥ पितरी जाया तु गमियं नियममिव सोहि । 1 तस्सिरिमऊ, बूदवशी राय पव्यय ६० ॥ कुमारःविविदा 55दिवाहिनेपदे निवडणथम्थमस्सं पियामि ॥ ६१ ॥ हु पितरीसुकुलुग्गयाउ लाघ- नसलिलसरियाज तुज्झ दइयाओ । सामाि कुमारः विसायसमे विस दुपखतरुवीयभूष को सेवा बचे ६३ पितरीपुरिसपरंपरप, वितमिद दाडं भुत्सु पकामं, पच्छा पडिवज पव्वजं ॥ ६४ ॥ कुमारः जलजलणपमुसादा राजनिरिंग ! ममं वित्तम्मिन को इ इत्थ पडिबंधमुग्वद्दर ॥ ६५ ॥ पितरौ विवरणं दुकरं नहा पुरु! बयपालणं बिसेसा, तुद्द सरिसाणं श्रइसुहीणं ॥ ६६ ॥ कुमारः कोवा कायरा विसपतिविषा करें एवं । उज्जमधणाण धणियं सव्वं सभं तु पड़िहाइ ॥ ६७ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016045
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1652
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size60 MB
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