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आलोयणा अभिधानराजेन्द्रः।
पालोयणा गुरुस्लावि विहीपुव्वं, खामणमरिसामणं करे ।। ६३॥ ण माणंण संघेयं पाण, परिच्चयणकेवनी ॥३॥ खमावेंतु गुरुं सम्मं, नाणमहिमं स सात्तिओ ॥ अन्नं होही सरीरं मे, नो वोही चेव केवली ।। काऊणं वंदिऊणं च, विहिपुव्वेण पुणोवि य ॥ ६ ॥ सुबकामिणं सरीरेणं, पाविणीहणकेवनी ॥ ४॥ परमतत्तसारचं, सख्युचरणमिमं सणे ॥
अणापावकम्ममन्त्रं, निघोवेमीह केवड़ी। मुणेज्जा तहमानोए, जह आसोयतोचेव ।। ६५ ।। वीयंत न समायरियं, पमाया केवनी तहा ॥ ५॥ नप्पाए केवलं नाणं, दिने रिसनावत्यहि निसदा ॥ देहे खवन सरीरं मे, निजराजावउ केवजी। आलोयणा जेण, आलोयमाणाणं चेव जप्पन्न तत्थ- सरीरस्त संजमं सारं निक्कलंकं तु केवली॥ ६ ॥ केवलं ॥६६॥
मणसा विखंगिए सीने, पाणेण धरामि केवल्ली। केसि विसोदिमो नामे, महासत्ताण गोयम! । जेहिं ना- एवं वश्कायजोगेणं, सीसं रक्खे अहं केवली ॥७॥ वणा लोययं, तेहिं केवल नाणमुप्पाइयं ॥ ६७ ॥ एवमाई अणादीया, कालाउ एंते मुणी। हाहा जुट्नु को साहू,हाहा उतु विचिंतिरे । केश्यामायणासिके, पच्चित्ता जाइ गोयमा! ॥10॥ हाहा दुट्नागिरे साहु, हाहा टुवुम मते ।। ६०॥ खंता दंता विमुत्ता य, जिइंदी सम्बनासियो। संगालोयगे तह य, नावालोयणकवली ॥
बकायसमारंजाओ, विरत्ते तिविहे पओ ॥ नए। पयखेन केवली चेव, मुहणांतगकेवली ॥ ६ ॥ तिदंमा सवसंवरिया, इथिकहासंगवजिया । तहा पच्छित्तकेवली, सम्म महावेरग्गकेवली ।।
त्यिणं लावनिरयाय, अंगोवंगणिरक्खणा ॥ ५० ॥ आलोयणकवली तहय, हा हं पावित्तिकेवली ।। ७०॥ निम्ममत्ता सरीरेवि, अप्पमित्रा महायसा । उसुत्तमग्गं पनवए, हाहा अणायारकेवली ।।
जीयाइत्यित्यिगन्नवसहीएं, बहुदुक्खाओ जावो सावजं न करेमित्ति, अक्खमिय सीलकेवली॥ ७१ ॥ तहा तोपरिसेणं, जावणं दायव्या आलोयणा । तबसंजमवयसं, रक्खे निंदणगरहणे तहा ।
पच्चित्तं पि व कायव्वं, तहा जहा चेव एहिं कयं एशा सव्वतो सीलसंरक्खे, कोमीपच्चित्ते वि य ॥ ७ ॥
न पुणो तहा आरोएयव, मायामनेण केण । निप्परिकम्मे अ कंपणे, आणिमिसत्यी य केवली।
जह आलोयणं चेव, संसार बुटिनवे ।। ३ ॥ एगपासित्तदोपहरे, मूणव्ययकेवली तहा ॥७३॥
अणंतेवाइकालाओ, अत्तकम्मेहिं उम्मइ । न सकोकाउ सामन्न, अणसणे वामि केवन्नी।
बहुविकप्पकब्रोले, आझोए तेवि अहोगए ॥ ४ ॥ नवकारकेवली तहय, य निचासोयणकेवली ॥७॥
द० ५० ॥ नहु सिकई स स समो, जह जणियं सानीससकेवझी तह य, सखुधरणकेवन्नी।
सणं धुयरयणा। . धन्नोमितिसंपुनो, स ताहंपी किन्न केवली ॥७।। सन्नबो हं न पारेमि, वसकहरयकेवली ।
उघारियसबसलो, सिज्मइ जीवो धुअकिलेसोश।।। पावसुधा विहाणे य, चाउम्मासी य केवनी ॥७६॥
सुबहुपि नावसवं, जे नालोयंति गुरुसगासंमि ।
निसलासंथारग, सुञ्चितिवाराहगा हुंति ॥ २५ ॥ संवच्छरमहपच्चित्ते, जहा चनजीविते तहा।
अप्पाप जावसयं, जे नालोयंति गुरुसगासंमि । अणिचे खामविकंसी, मणुपत्ते केवसी तहा ॥७७॥
वैतपि सुयसमिछा, नहु ते आराहगा हुंति ॥ २६ ॥ आलोयं निंदरं दियए, घोरपच्चित्तबुकरे ।
नवि ते सत्यं च विसं, च दुप्पनत्तो वि कुणा वेयाला। लखोवनग्गपच्चित्ते, संमहिया सण केवली ॥ ७॥
जंतं च दुप्पनत्तं, सप्पुव्वपमाइओ कुछो ॥ २७॥ हत्योसरणनिवासे य, अटकवनासि केवली ।
जं कुण जावसवं, अणुष्ठियं उत्तमकालमि ॥ एगसिधगपच्छित्ते, दसअसो केवली तहा ॥७॥
सुनलब्बोहियत्तं, अणंतसंसारियंतं च ॥ २० ॥ पच्चित्ताढवगोवेसु, पच्चित्तचकयकेवमी।
तत्युचरंति गौरव, रहिया म्नं पुगज्वलयाणं ।। पच्चित्तपरिसमत्ती, य अहस नकोसकेवनी ॥७॥
पिच्चगदंस एसलं, मायासनं नियाणसचं च ॥ २० ॥ न सुकिवि न पच्चित्ता, नावरं खिप्पकेवसी ।
मरिकं ससक्षमरणां, संसारामविमहाक.मम्मि ॥ एग काऊण पच्चित्तं, वीयं न नवेजह चेव केवली।1०२॥
सुचिरं जमति जीवा, अणोरपारंमि अोइन्ता ।। ४२॥ तं वा यराम पच्चितं, जेण गच्छइ केवली।।
व्याख्या । मृत्या आसेव्य सशल्यमरणं प्रतीतं ततः किमितं वा यराम जेण तमं, सफली होइ केवल्ली।। न्॥
त्याह । संसारामविमहाकमिले भवारण्यगुरुगहने सचिकिं पचित्तं चरतोडे, चिहणो तवलीजिणा ।।
रमतिदीर्घकाझं घमंति पर्यटति जीवा देहिनः अनर्याक पारे
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