SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का खण्डन, कर्म के मृतत्व पर आक्षेप और परिहार, जगत के वैचित्र्य से भी कर्म की सिद्धि. जीव के साथ कर्म का सम्मान, कर्म का अनादित्व, जगत की विचित्रता में कर्मही कारण है ईश्वरादि नहीं हैं इसका निरूपण, स्वजाववादी के मत का खएमन, पुण्य और पाप कर्म रूप ही हैं, पुण्य और पाप के जिन बक्षण, कर्म के चार लेद, हानावरणीय दर्शनावरणीय और मोहनीयों का विचार, नामकर्म गोत्रकर्म और आयुष्यकर्म का निरूपण इत्यादि ३७वषय विचारणीय हैं। ए-कसाय' शब्द पर कषायों का निरूपण है।। १०- काउसम्ग' शब्द पर कायोत्सर्ग का अर्थ , किन किन कार्यों में कितने उच्गस मान व्युत्सर्ग है, किस रीति से कायोत्सर्ग में स्थित होना इत्यादि १५ विषय बसे गंजीर हैं। ११-'काम' शब्द पर काम की रूपित्वसिधि, अरूपित्व का खएकन; तथा 'कायडिइ' शब्द पर जीवों की कायस्थिति, जीवों की नैरयिकादि पर्याय से स्थितिचिन्ता, तिर्यक् तया तिर्यस्त्रियों की, और मनुष्य तथा मनुष्यस्त्रियों की कायस्थिति, देव तथा देवियों की कायस्थिति, पर्याप्तापर्याप्त के विशेष से नैरयिकों की कायस्थिति, इन्जियों के द्वारा से जीवों की कायस्थिति, कायद्वार से जीवों की कायस्थिति,इसी तरह योगद्वार, वेददार, कषायद्वार, लेश्याद्वार,सम्यग्दृष्टिद्वार, ज्ञानद्वार, दर्शनद्वार संयमद्वार, उपयोगद्वार, आहारद्वार, नाषकानाषकद्वार, संझिदार, जवस्थितिकद्वार के जद से जीवों की कायस्थिति, और उदकगादिकों की कायस्थिति इत्यादि२० विषय हैं। १२- काल ' शब्द पर कासशन्द की व्युत्पत्ति, काल की सिदि, काल का लक्षण, काम के भेद, दिगम्बर की प्रक्रिया से काल का निरूपण , और उसका खएकन,काल का ज्ञान मनुष्य क्षेत्र ही में होताहै इसका निरूपण, काल के संख्येय, असंख्येय और अनन्त भेद से तीन नेद तीर्थकर और गणधरों से कहे हुए हैं, स्निग्ध और रूक्ष नेद से काम के दो जेद, स्निग्ध और रूक्ष के तीन तीन लेद इत्यादि विषय निर्दिष्ट हैं।। १३-'किइकम्म' शब्द पर कृतिकर्म में साधुओं की अपेक्षा से साध्वियों का विशेष, यथोचित वन्दना न करने में दोष, कृतिकर्म में द्रव्य और भाव के जनाने के लिये दृष्टान्त, कृतिकर्म करने के योग्य साधुओं का निरूपण, तथा वन्दन करने के योग्य साधुओं का निरूपण, अव्य-क्षेत्र-काल-नाव से नेद, आचरणा का लक्षण, और पर्याय ज्येष्ठों से प्रा. चार्य की वन्दना का विचार, देवसिक और रात्रिक प्रतिक्रमण के मध्य में स्तुति मङ्गल अवश्य करना चाहिये, कृतिकर्म किसको करना चाहिये और किसको नहीं इसका विवेचन, पार्थस्यादि कों की वन्दना पर विचार सुसाधु के बन्दना पर गुण का विचार, कृतिकर्म करने में उचितानुचित का निरूपण, कृतिकर्म को कब करना और कब नहीं करना, और कितनी वार कृतिकर्म करना इसका निरूपण, नियत वन्दनस्थान की संख्याका कथन, कृतिकर्म के स्वरूप का निरूपण इत्यादि १ विषयों का विवेचन है। १४--'किरिया' शब्द पर क्रिया का स्वरूप, क्रिया का निक्षेप, क्रिया के जेद, स्पृष्टास्पृष्टत्व से प्राणातिपातक्रिया का निरूपण, क्रिया का सक्रियत्व और प्रक्रियत्व, मृषावादादि का आश्रयण करके क्रियाकरने का प्रकार, अष्टादश स्थानों के अधिकार से एकत्व और पृथक्त्व के द्वारा कर्मबन्ध का निरूपण, झानावरणीयादि कर्म को बाँधता हुवा जीव कितनी क्रियाओं से समाप्त करता है, मृगयादि में उद्यत पुरुष की क्रिया का निरूपण, क्रिया से जन्य कर्म और उसकी वेदना के अधिकार से क्रिया का निरूपण, श्रमणोपासक की क्रिया का कथन, अनायुक्त में जाते हुए अनगार की क्रिया का निरूपण इत्यादि १८ विषय आये हुए हैं। १५–'कुसील' शब्द पर कुशीन किसको कहना, और उनके जेद, कुशील के चरित्र, कुशीनों के निरूपणानन्तर मुशीलों का निरूपण, पार्थस्थादिकों का संसर्ग नहीं करना, और उनके संसर्ग में दोष इत्यादि विषय हैं। १६-केवलणाण' शब्द पर केवलज्ञान शब्द का अर्थ, केवलज्ञान की सिद्धि. इसका साद्यपर्यवासितत्व, केवलज्ञान के भेद, सिद्ध का स्वरूप, किस प्रकार का केवलज्ञान होता है इसका निरूपण, स्त्रीकथा नक्तकथा देशकथा और राजकया करनेवाले के लिये केवल ज्ञान और केवन दर्शन का प्रतिबन्ध इत्यादि विषय द्रष्टव्य हैं। १७--'केवलिपमत्त' शब्द पर केवली से कहे हुए धर्म का निरूपण, केवली के नेद,पहिले केली हो कर ही सिधि को प्राप्त होता है, केरनी के आहार पर दिगम्बर की विप्रतिपत्ति आदि विषय निरूपित हैं। १७-' खोवसमिय' शब्द पर क्योपशमिक के जेद तथा औपशमिक से इसका भेद, और उसके अगरह जेद इत्यादि विषय षष्टव्य हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016041
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1064
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy