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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 73 अन्य भाषाओं में नाम एक प्रकार के कृमि द्वारा उत्पन्न यह एक प्रकार हि०-माजूफल । ब०-माजूफल । म०-मायफल। का कीट गृह है। जो वृक्षों की नवीन शाखाओं पर पाया गु०-कांटावालांमायां, मायां। फा०-माजू। क०- जाता है। यह गोल १० से २५ मि०मी० व्यास का मायूफल | ता०-माचकाय । तै०-माचकाय, मशीकाया। वजनदार, गोल उभारों से युक्त तथा आधार की तरफ क०-मचीकायी। मल०-मासीकाय। अं0-अप्स। छोटे से डंठल से युक्त होता है। इसका रंग प्रारंभ में ब्राह्मी०-पिंजाकनीसी। अंo-Oakgalls (ओकगाल्स)। नीलाभ धूसर, फिर हरा तथा अंत में जब इसमें से छेद ले०-Quercus Infectoria oliv (क्वेर्कस इन्फेक्टोरिया)। करके भीतर का कृमि बाहर निकल जाता है तब श्वेत माजफल-यह माजूफलादि कुल कवृक्ष भारतवर्ष दे कुल के वृक्ष भारतवर्ष हो जाता है। हरा अच्छा माना जाता है। इसका स्वाद हा जाता ह। हरा अच्छा माना जाता में पैदा नहीं होते। इसके झाड़ीदार वृक्ष की आकृति सरू कषाय होता है। यह कषाय स्तंभन, कफघ्न एवं विषघ्न के वृक्ष के समान होती है। इस वृक्ष के फलों में एक प्रकार है। इसका उपयोग अतिसार प्रवाहिका तथा विषाक्तता की मक्खी के समान नीले रंग के कीड़े छेद करके घुस में करते हैं। दंत मंजनों में इसे डालते हैं तथा व्रण पर जाते हैं और उसके गूदा को साफ करके उसमें बच्चे इसका बाह्य प्रयोग करते हैं, जिससे रक्तस्राव रुकता दे देते हैं। ये बच्चे उसी फल में बढ़ते रहते हैं और पूर्ण (भाव०नि० पृ० ८३४) होने पर निकल जाते हैं। इसलिए माजूफल के हर एक फल में एक छेद होता है। किन्तु यथार्थ में ये फल नहीं कुंकुम है। वृक्ष में ही फल से दीखते हैं। इस कारण इनकी छाल और बीज नहीं होते। एक विशेष प्रकार की मक्खियां कुंकुम (कुकुम) केशर रा० ३० जीवा० ३।२८३ (Cynips gallel tinctoria) पतली टहनियों और शाखाओं कुकुम के पर्यायवाची नामको कुतर कर उसमें अपने अण्डे रख देती है। फिर शाखा कुडमं घुसृणं रक्तं, काश्मीरं पीतकं वरम् ।। में वेदना या उत्तेजना होकर रसस्राव होता है,जो अण्डे संकोचं पिशुनं धीरं, बाल्हीकं शोणिताभिधम् ।।७४ ।। को चारों ओर से घेर लेता है। परिणाम में वह उन्नाव कुंकुम, घुसृण, रक्त, काश्मीर, पीतक, वर, जितना बड़ा कृत्रिम फल बन जाता है। इन फलों के भीतर संकोच, पिशुन, धीर, बाल्हीक और शोणिताभिध अण्डे या भ्रूण का विविध रूपान्तर होता है। जब उसके (रक्तवाची सभी शब्द) ये सब केशर के संस्कृत नाम हैं। पंख आ जाते हैं, वह तोड़कर बाहर निकल जाता है, (भाव०नि० पृ० २३२) अन्य भाषाओं में नामतब रूपान्तर बन्द हो जाता है। जो माजूफल मक्खी निकलने के पहले इकट्ठे किए जाते हैं, वे उत्तम माने जाते हि०-केशर । म०-केशर। गु०-केशर | बं०हैं। छिद्र युक्त सफेद या हल्के रंग का माजूफल कम कुंकुम, केशर। क०-कुंकुम। ते०-कुंकमपुव । गुणवाला होता है। माजूफल का आकार उन्नाव के बराबर ता०--कुंकुमपु। फा०करकीमास। अ०-जाफरान । और रंग बाहर से पीलापन लिये गहरा हरा और धरातल 310-Saffron vestido-Crocus Sativus linn (Salcher पर छोटे-छोटे उभार तथा अंदर से पीला या सफेदी लिये सेटाइवस् लिन०)। उत्पत्ति स्थान-केशर का नैसर्गिक उत्पत्ति स्थान भूरा, मध्य में किंचित् पीला निर्गन्ध और स्वाद में अत्यन्त दक्षिण योरप है। यह स्पेन से बम्बई में बहुत आता है कषाय होता है। रंग के विचार से ये चार प्रकार के होते । हैं। (१) नीला (२) काला (३) हरा (४) सफेद। और भारतवर्ष के बाजारों में बिकता है। ईरान, स्पेन, उत्पत्ति-यूनान, एशिया माइनर, सीरिया और फ्रांस, इटली, ग्रीस, तुर्की, चीन और फारस आदि देशों फारस। वहीं से इसका आयात भारतवर्ष में होता है। में इसकी खेती की जाती है। हमारे देश के काश्मीर में (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग पृ० ३६५, ३६६) पम्पूर (४३०० फीट) नामक स्थान पर तथा जम्मू के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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