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________________ जैन आगम वनस्पति कोश अन्य भाषाओं में नाम हि० - ढाक, पलाश, परास, टेसु । बं० - पलाश गाछ । म० - पलस । गु०- खाखरो। मु०- खाकरो । क० - मुत्तग । ते० - मोद्गु । ता०- पलासु । अंo - The forest flame (दि फॉरेस्ट फ्लेम) ले० -- Butea frondosa Koen (व्यूटिया फ्रॉन्डोसा) Fam Leguminosae ( लेग्युमिनोसी) । उत्पत्ति स्थान - यह अत्यन्त शुष्क भागों को छोड़कर प्रायः सब प्रान्तों में पाया जाता है और इसको वाटिकाओं में भी रोपण करते हैं। विवरण- इसके वृक्ष छोटे या मध्यम ऊंचाई के होते हैं तथा समूहों में रहते हैं। पत्ते त्रिपत्रक होते हैं। पत्रक १० से २० से०मी० चौड़े, कर्कश, ऊपर से चिकने किन्तु नीचे मृदु रोमश तथा उभरी हुई शिराओं से युक्त होते हैं । अग्रपत्रक तिर्यगायताकार, वृन्त की तरफ कुछ पतला या अभिअंडाकार, कुण्ठिताग्र या खण्डिताग्र एवं बगल के तिर्यक् अण्डाकार होते हैं। पुष्प बड़े सुंदर नारंग रक्तवर्ण के होते हैं, जो प्रायः पत्रहीन शाखाओं पर एक साथ बहुत होते हैं। स्वरूप में ये दूर से सुग्गे की चोंच की तरह मालुम होने से इसे किंशुक कहा जाता है। फली १२.५४२० और २.५ से ५ बड़ी, अग्र की तरफ एक बीज युक्त होती है। बीज चिपटे, वृक्काकार २५ से ३८ मि०मी० लम्बे १६ से २५ मि०मी० चौड़े १.५ से २ मि०मी० मोटे, रक्ताभ भूरे, चमकीले सिकुडनयुक्त स्वाद में कुछ कटु एवं तिक्त तथा गंध हल्की होती है। इसका गोंद Bengal Kino (बंगाल किनो) रक्तवर्ण, सूखने पर कृष्णाभ रक्त, भंगुर और चमकदार होता है । (भाव० नि० पृ० ५३६) किट्टि किट्ठि (किटि, गृष्टि) वाराहीकंद किटि के पर्यायवाची नाम वाराही मागधी · गृष्टि, स्तत्कन्दः सौकरः किटिः । वाराही, मागधी, गृष्टि, सौकर, किटि ये वाराहीकन्द के नाम हैं। ( मदनपाल निघण्टु शाकवर्ग ७ / ८४) विमर्श - किट्टि शब्द की संस्कृत छाया किटि और गृष्टि दोनों हो सकती है। दोनों ही छाया किट्ठि के Jain Education International भ० २३/१ निकटवर्ती है । पहले में ठ शब्द अधिक है और दूसरी छाया में क को ग हुआ है । आर्षप्राकृत में यह संभव है । किरितटं - गिरितटं (प्राकृत व्याकरण ४ / ३२५) काठं- गाढम् (प्राकृत व्याकरण ४ / ३२५) 71 .... किट्टिया किट्टिया (गृष्टिका) वाराही कंद भ० ७/६६ जीवा० १/७३ विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में किट्टिया शब्द कंदवर्ग के शब्दों के अन्तर्गत है । कंदवाचक संस्कृत शब्दों में कृष्टिका शब्द नहीं मिलता है, गृष्टिका शब्द मिलता है। इसलिए यहां गृष्टिका का अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। गृष्टिका के पर्यायवाची नाम स्याद्वाराही शूकरी क्रोडकन्या, गृष्टिर्विष्वक्सेनकान्ता वराही । कौमारी स्याद् ब्रह्मपुत्री, त्रिनेत्रा, क्रौडीकन्या गृष्टिका माधवेष्टा ।६५।। शूकरकंद, क्रोडी वनवासी, कुष्ठनाशनो वन्यः । अमृतश्च महावीर्य्यो, महौषधिः शकरकन्दश्च । ८६ ।। वराहकंदो वीरश्च, ब्राह्मकन्दः सुकन्दकः । वृद्धिदो व्याधिहन्ता च वसुनेत्रमिताहवयाः ।। ८७ ।। वाराही, शूकरी, क्रोडकन्या, गृष्टि, विष्वक्सेन कान्ता, वराही, कौमारी, ब्रह्मपुत्री, त्रिनेत्रा, क्रौडीकन्या, गृष्टिका, माधवेष्टा, शूकरकन्द क्रोडी, वनवासी, कुष्ठनाशन, वन्य, अमृत, महावीर्य, महौषधि, शकरकन्द, वराहकन्द, वीर, ब्राह्मकन्द, सुकन्दक वृद्धिद तथा व्याधिहन्ता ये सब वाराहीकन्द के अट्ठाइस नाम हैं । (राज० नि० ७।६५ से ८७ पृ० २०४ ) अन्य भाषाओंमें नाम For Private & Personal Use Only हि० - वाराहीकंद, गेंठी, म० - डुक्करकन्द. कडूकरांदा। गु० - डुक्करकंद, बणाबेल । बं० - रतालु । T ले०- Dioscorea bulbiferalinn (डायोस्कोरिआ बल्बिफेरा लिन० ) Fam. Dioscoreaceae (डायोस्कोरिएसी) । उत्पत्ति स्थान - यह दून और सहारनपुर के वनों ५ हजार फीट की ऊंचाई तक तथा सभी स्थानों www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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