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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश ... विवरण-श्वेत और कृष्ण (काले) भेद से तुलसी आरबोरिया)। की दो जातियां है। कृष्णा के पत्रादि कृष्णाभ होते हैं। उत्पत्ति स्थान-भारत वर्ष के कई प्रान्तों में तथा गुण धर्म की दृष्टि से काली तुलसी श्रेष्ठ मानी जाती है। सीलोन, श्याम आदि देशों में इसके वृक्ष जंगलों में पाये (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग 3 पृ० ३५८) जाते हैं। विवरण-वटादि वर्ग की इन वनौषधि के वृक्ष ऊंचे कण्ह ३० से ६० फुट तक होते हैं। पुष्प भेद से इसके श्वेत कण्ह (कृष्ण) रक्त उत्पल प० १/४८/७ उ० ३६/६८ और कृष्ण दो प्रकार हैं। श्वेत कटभी जिसके वृक्ष बहुत ऊंचे होते हैं वह महाश्वेता और जिसके वृक्ष छोटे कद विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में कण्ह शब्द वज्जकंद और के होते हैं वह हस्वश्वेता कही जाती है। इनके फलों का सूरणकंद के साथ है । (भ०७/६६) में कण्हकंद वज्जकंद सूरण कंद शब्द हैं। इससे लगता कि यह कण्हकंद शब्द आकार प्रकार कुछ कुंभ (घडा) जैसा होने के कारण इसे का ही संक्षिप्त रूप है। इसलिए यहां कण्ह शब्द से कुंभी भी कहते हैं। इसके पत्ते महुये के पत्ते जैसे लंबे, कण्हकंद शब्द ग्रहण कर रहे हैं। गोलाकर, चौड़े, मुलायम और तीक्ष्ण नोंक वाले होते हैं। पुष्पों की मंजरी साथ लगती है। किसी वृक्ष में श्वेतवर्ण के और किसी में कुछ काले वर्ण के फूल, कुछ दुर्गन्ध कण्हकंद युक्त होते हैं। इनमें ४ पंखुडियां होती हैं। इसके फल कण्हकंद (कृष्णकन्द) रक्त उत्पल हरित वर्ण के गोलाकार, मुलायम, गूदेदार अण्ड खरबूजे भ० ७/६६ जीवा० १/७३ जैसे किन्तु इनसे छोटे होते हैं। वृक्ष की छाल भूरे रंग कृष्णकन्दम् । क्ली। रक्तोत्पले। की और लकडी सदढ होती है। इसके दस्ते बनाये जाते ___ (वेधक शब्द सिन्धु पृ० ३०६) हैं। इसकी छाल, फल, फूल और पत्ते औषधि कार्य में लिये जाते हैं। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ४४,४५) कण्हकडबू कण्हकडबू (कृष्ण कटभी) कृष्णपुष्पवाली कटभी कण्हकणवीर प०१/४८/३ विमर्श-वनस्पतिशास्त्र में कडबू, कटबू, कडभू कण्ह कणवीर (कृष्ण कणवीर) काला कनेर । (जीवा० ३/२७८) और कटभू ये संस्कृत रूप नहीं मिलते हैं। कटभू के स्थान देखें किण्ह कणवीर शब्द। पर कटभी मिलता है। इसलिए इसे ही ग्रहण किया जा रहा है। " किण्ह कणवीर (कृष्ण कणवीर) काला कनेर । रा० २५ जीवा० ३/२७८ प० १७/१२३ कटभी के पर्यायवाची नाम कृष्ण कणवीर के पर्यायवाची नामकटभी स्वादुपुष्पश्च, मधुरेणुः कटम्भरः। कटभी, स्वादुपुष्प, मधुरेणु, कटम्भर ये कटभी के कृष्णस्तु कृष्णकुसुमः। पर्यायवाची हैं। (भाव०नि० वटादिवर्ग० पृ० ५४३) __कृष्ण कनेर का कृष्णकुसुम नाम है। (रजि०नि० अन्य भाषाओं में नाम १०/१६) राजनिघंटु और निघंटुरत्नाकर में कृष्ण या कालेकनेर की भी बात कही गई है किन्तु यह कहीं देखने हि०-कटभी, कटही, हारियल। म०-कुम्भा, में नहीं आता है (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ६०) वाकुम्भा। बं०-कम्ब, कुम्भ, वकुम्भ,। गु०-कुम्बि, देखें कणइर शब्द। टीबरू, वापुम्बा । अंo-Patana Oak Careystree (पाटन ओक केरियास ट्री)। ले०-Careya Arborea (केरिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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