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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 47 कणइरगुम्म कणइरगुम्म ल्म देखें कणइर शब्द। जीवा०३/५८० जं० २/१० उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय के मन्द कटिबंध में काश्मीर से लेकर सिक्किम तक ९००० फीट की ऊंचाई तक, मध्यभारत के पहाडी प्रदेश, दक्षिणी एवं अन्य प्रान्तों में भी पाया जाता है। विवरण-इसका क्षुप एक वर्षायु तथा करीब २ से ४ फीट कणक ऊंचा होता है। कांड हरा या जामुनी रंग का काला होता है। पत्ते कणक (कनक) धतूरा भ०२१/१७ अण्डाकार, धार पर लहरदार या गहरे विच्छोदों से युक्त, करीब कनक के पर्यायवाची नाम ७ इंच लंबे, ५ इंच चौडे, हल्के हरे रंग के चिकने (कोमल धत्तूरः कनको धूर्तो, देवता कितवः शठः। पत्र लोम युक्त) तथा पर्णवन्त से युक्त होते हैं। इनमें उग्रगंध उन्मत्तको मदनक: कालिश्च हरवल्लभः ।।६।। रहती है तथा इनका स्वाद कडवा एवं अरुचिकारक होता है। पुष्प श्वेत भूरे या कभी-कभी बैंगनी आभायुक्त, दलपत्र करीब कनक, धूर्त, देवता, कितव, शठ, उन्मत्तक, मदनक, कालि ३ से ६ इंच लंबे तथा संख्या में ५ रहते हैं। फल अंडाकार, और हरवल्लभ ये धत्तूर के पर्याय हैं। (धन्व० नि० ४/६ पृ० १८१) ऊर्ध्वमुख चार खंडों से युक्त तथा कठोर, लंबे एवं छोटे कंटकों अन्य भाषाओं में नाम से ढका हुआ शीर्ष पर चार फांक में खुलने वाला एवं इसके हि०-धतूर, धतूरा, धातूरा। बं०-धुतुरा, धुत्तूरा। म०- आधार पर बाहर और नीचे की ओर मुडा हुआ स्थायी प्रबुद्ध धोत्रा। गु०-धंतूरो, धत्तूरो। प०-धत्तूर, धत्तूरा। मल०-उन्म, बाह्य दल रहता है। बीज चिपटे, वृक्काकार, करीब ३ मि० मि० उन्मत्तं।क०-मदेकणिकेते०-उम्मेत्त धत्तरमाता०-उम्मत्तई। लंबे, २ मि० मि० चौडे १ मि० मि० मोटे, काले से भरे रंग फा०-तातूरह, तातूरा।अ०-बौजमासम, जौजुल्मासेल।अं० के ,खुरदरे, स्वाद में कडवे, तैलीय एवं अत्यन्त गंधवाले रहते Datura (दतुरा), Thornapple (थार्ने पल) ले० (भाव० नि० गुडूच्यादि वर्ग पृ० ३१८) D.NILHUMMATU (ड. निलहुम्माटु)। कणय कणय (कनक) कसौंदी, कासमई क्षुप। प० १/४१/२ कनकः। पुं. कासमईक्षुपे। जयपालवृक्षे, रक्तपलाशवृक्षे नागकेसरवृक्षे,कृष्णागुरुवृक्षे, धूस्तूरवृक्षे,चम्पकवृक्षे,लाक्षातरौ, कृष्णधूस्तुरे। (वैधक शब्द सिन्धु पृ० १९६) विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में कणय शब्द पर्वक वर्ग के अन्तर्गत है इसलिए कनक के ९ अर्थो में यहां कासमई (कसौंदी) अर्थ ग्रहण किया जा रहा है। कनक के पर्यायवाची नाम कासमर्दोऽरिमर्दश्च, कासारिः कासमईकः। कालः कनक इत्युक्तो, जारणो दीपकश्च सः।। १७९॥ कासमर्द, अरिमर्द, कासारि, कासमईक, काल तथा कनक ये सब कासमई के नाम हैं और यह जारण तथा दीपक कहा गया है। (राज०नि०४/१७१ पृ०९६) अन्य भाषाओं में नाम हि०-कसौंदी, कासिंदा, कसौंजी, गजरसाग तथा काली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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