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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश कंगू कंगूया( में से जो बारीक दाने निकलते हैं, उन्हीं को कंगुनी कहते हैं। (भाव०नि० धान्यवर्ग० पृ०६५७) कंगू (कंङ्ग) कंगुनीधान्य भ० २१/१६ प० १/४५/२ कंगू के पर्यायवाची नामकङ्गौ तु कङ्गनी क्वगुः प्रियङ्गु पीततण्डुला॥ ३९४॥ कंगूया सा कृष्णा मधुका, रक्तका शोधिका मुसटी सिता पीता माधवी प०१/४०/२ कङ्गु, कङ्गुनी, क्वङ्ग, प्रियङ्ग, पीततण्डुला-ये कंगु धान्य विमर्श-कंगूया शब्द की संस्कृत छाया कंगुका होती है के नाम हैं। काली कंगु को मधुका, लाल कंगुको शोधिका, और हिन्दी अर्थ होता है कंगुधान्य। प्रज्ञापना १/४५/२ में भी श्वेत कंगु को मुसटी और पीली कंगु को माधवी कहते हैं। कंगु शब्द ओषधिवर्ग के अन्तर्गत आया है। प्रस्तुत प्रकरण में (सटीक निघंटुशेष पृ० २१४) यह कंगुया शब्द वल्ली वर्ग के अन्तर्गत आया है। यहां पाठान्तर अन्य भाषाओं में नाम में केमूयी शब्द है इसलिए यहां केमुयी शब्द ग्रहण कर रहे हैं। हि०-कंगुनी, कगनी, टंगुनी। बं०-कांगुनी। म०-कांग। केमुयी (केमुका) केवुक कंद ता०-तेनई ग०-कांग।क०-नवणे।तें०-कोरलु।फा०-गल केमकः (का) त्रि०। केवुककन्दे उत्तरप्रदेशप्रसिद्धे। अरजुन। अ०-दुख्न। ले०-Setaria italica(सेटारिया तत्पर्यायः-पेचुकः, पेचुनी, पेचुः, पेचिका, दलसारिणी, इटेलिका) Fam. Gramineae(ग्रेमिनी)। केचुकः। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ३१६) केमुक के पर्यायवाची नाम केमुकं पेचुला पेलुः, पेलुनी दलशालिनी॥१६०७॥ केमुक, पेचुला, पेलु, पेलुनी, दलशालिनी ये पर्याय केमुक के हैं। (कैयदेव० नि० ओषधिवर्ग पृ०६४३) अन्य भाषाओं में नाम हि०-केमुआ, केमुक, केवुककंद, केवा। म०-पेवा। ते०-चेंगल्बकोटु । बं०-के ऊ। ले०-Costus Speciosus(कोस्टस् स्पेसिओसस्)। उत्पत्ति स्थान-यह प्रायः सभी स्थानों पर किन्तु विशेष रूप से बंगाल तथा कोंकण में होता है। इसे शोभा के लिए बागों में भी लगाते हैं। आर्द्र तथा छायादार स्थानों में वर्षा में यह उत्पत्तिस्थान-कगूनो का खता प्रायःसब प्रान्ता महाता अधिक होता है। है। यह ६ हजार फीट की ऊंचाई तक हो सकने के कारण विवरण-इसका क्षुप २ से ६ फीट ऊंचा होता है। मूल हेमालय के तराई प्रदेश में भी इसे लोग बोते हैं। इसकी स्तंभ कन्दवत् तथा अदरख के समान होता है। पत्ते भालाकार सालभर तक पैदावार की जा सकती है तथा यह सौ दिन में ६ से १२ इंच लंबे एवं अधरतल पर रोमश होते हैं। पुष्प कांड तैयार हो जाती है। अधिकतर वर्षा के प्रारंभ में इसे बोते हैं। के अग्र पर सफेद ३ से ४ इंच बडे निर्गन्ध, पुष्प व्यूह में आते विवरण-इसका क्षुप ३ से ३.५ फीट ऊंचा , पतला एवं हैं। जिनके कोण पुष्पक भड़कीले लाल होते हैं। इसके कंद बाल के बोझ से झुका हुआ होता है। पत्ते १२ से १८ इंच लंबे, को पकाकर खाते हैं यह निर्गंध, कुछ कसैला एवं कुछ १.५ इंच चौडे, हलके हरे एवं रेखाकार भालाकार होते हैं। पुष्प लुआवदार होता है। व्यह अवन्त काण्डज, ६ से १२ इंच लंबा, ३.४ से १.५ इंच (भाव०नि० शाकवर्ग० पृ०७०१) व्यास के होते हैं। भेद के अनुसार ये लंबे भी होते हैं। बालों . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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