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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश इक्खुवाडिया इक्खुवाडिया (इक्खुवाटिका) पुण्ड्रक नामक ईख उंबर (उम्बर) गुलर का भेद प० १/४१ / १ इक्षुवाटिका (टी)। स्त्री । पुण्ड्रकेक्षौ । करङ्कशालीक्षौ (वैद्यक शब्द सिन्धु० पृ० १३३) पुण्ड्रक के पर्यायवाची नाम पुण्ड्रकस्तु रसालः स्यात्, रसेक्षुः सुकुमारकः । कर्बुरो मिश्रवर्णश्च, नेपालेक्षुश्च सप्तधा ॥ ८५ ॥ पुण्ड्रक, रसाल, रसेक्षु, सुकुमारक, कर्बुर, मिश्रवर्ण तथा नेपालेक्षु ये पुंड्रेक्षु के सात नाम हैं। अन्य भाषाओं में नाम म० - पुण्डाऊँस । क० - वासरकबु । गौ० - पुंडो आक, छांचि आव् (राज० नि० वर्ग १४/८५ पृ०४८९) इक्खुवाडिया (इक्षुवाटिका) करङ्क शालि नामक ईख का भेद । इक्षुवाटिका (टी) | स्त्री । पुण्ड्रकेक्षौ । करङ्कशाली क्षौ । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० १३३ ) प०१/४१/१ इक्षुवाटिका के पर्यायवाची नामअन्यः करङ्कशालिः स्यादिक्षुवाटी क्षुवाटिका । यावनी चेक्षुयोनिश्च, रसाली रसदालिका ॥ ८७ ॥ करङ्कशालि, इक्षुवाटी, इक्षुवाटिका, यावनी, इक्षुयोनि, साली तथा रसदालिका ये सब करङ्क (रसाली) गन्ना के नाम हैं। अन्य भाषाओ में नाम म० - रसदालि । क० - रसालऊंस । (राज० नि० १४/८७ पृ० ४८९, ४९० ) Jain Education International उंबभरिय उंबभरिय ( ) वायविडंग भ० २२/२ विमर्श - प्रज्ञापना १ / ३५ / २ में उंबभरिय के स्थान पर बेभरिया शब्द है। इसलिए इस शब्द के अर्थ के लिए बेभरिया शब्द देखो। उंबर 31 ठा० १०/८२/१५० २२/३ जीवा १/७२ प० १ / ३६ / १ विमर्श - मराठी और गुजराती भाषा में गूलर को उंबर और उम्बरो कहते हैं। संस्कृत भाषा में भी उम्बर शब्द है। पर उदुम्बर शब्द अधिक प्रचलित है। उम्बरः । पुं । उदुम्बरवृक्षे । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० १५३ ) निघंटुओं मे उदुम्बर शब्द मिलता है, उम्बर नहीं मिलता है। उदुम्बर के पर्यायवाची नाम उदुम्बरो जन्तुफलो, यज्ञाङ्गो हेमदुग्धकः ॥ उदुम्बर, जन्तुफल, यज्ञाङ्ग और हेमदुग्धक ये गूलर के संस्कृत नाम हैं। (भाव० नि० वटादिवर्ग० पृ०५१७) अन्य भाषाओं मे नाम हि० - गूलर, गुल्लर | बं०--यज्ञडुमुर । म० उम्बर, उम्बरा चे झाड । गु० - उम्बरो, ऊमरडो । क० अतिमर । अ० - ज़मीज । ते०- अतिचेट्टु । ता०- अत्तिमरं । फा० - अंजीरे आदम, समरपिस्ता | ले० - Ficusglomerata(फाइकसग्लोमेरटा) Fam. Moraceae (मोरेसी) । For Private & Personal Use Only उत्पत्ति स्थान - समस्त भारत वर्ष में ६००० फुट (१८२८ मीटर की ऊंचाई तक गूलर के लगाये हुए तथा जंगली दोनों प्रकार के वृक्ष मिलते हैं। सदाबहार जंगलों एवं नदी, नालों के किनारे इसके वृक्ष अपेक्षाकृत अधिक मिलते हैं। www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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