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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश विवरण-इसका क्षुप २० से ३०फीट उंचा सुन्दर होता है। रोगमुक्त होता है, ऐसी कनावार के लोगों की मान्यता है। पत्ते संयुक्त, शाखाग्र पर समूह बद्ध एवं पत्रक १० से १६ गुणधर्म-इसकी जड़ में कृमिनाशक, मूत्रनिस्सारक और भालाकार, आयताकार, एकान्तर या न्यूनाधिक विपरीत विशूचिकानिवारण गुण भी पाया जाता है। सन्धिवात या गठिया तीक्ष्णाग्र या कुण्ठिताग्र चिकने एवं आधार पर तिर्यक् होते हैं। बीमारी में भी लाभदायक सिद्ध हुई है। इसका बफारा दिया पुष्प मंजरियों में १/५ इंच व्यास के एवं श्वेत या बैंगनी रंग जाता है और मूल के क्वाथ या कांटे को पिलाया जाता है।" के होते हैं। फल मांसल पीत या हलके भूरे कुछ गोलाई लिये (धन्वन्तरि वनौ० विशे० भाग १ पृ० २७३) हुए ३/४ इंच व्यास के तथा पानी में डालने से फेन उत्पन्न करने वाले होते हैं। (भाव०नि० पृ०५३०) अल्लाई अलई (शल्लकी) सलईवृक्ष भ० २२।४ जीवा० ३।२८१ अलाई विमर्श-प्रज्ञापना सूत्र (१३७।१) में सलई शब्द है। अल्लई (अल्ली) अल्लीपल्ली भ० २२।४ जीवा० ३।२८१ प्रस्तुत प्रकरण भगवती सूत्र में सल्लई के स्थान पर आलई है। विमर्श-प्राकृत में एक पद में भी संधि होती है। अल्लई सल्लई का पर्यायवाची एक नाम वल्लई मिलता है। संभव है एक का अल्ली बनता है। अल्लीपल्ली का संक्षिप्त रूप अल्ली है। संभव __नाम अल्ल्ई भी हो या अल्लई का संस्कृत रूप शल्लकी बनता है यह अल्ली-पल्ली प्राकृत में अल्लई नाम से व्यवहृत हुई हो। वनौषधि विशेषांक में इस (अल्ली पल्ली) का वर्णन इस प्रकार देखें सलाई शब्द मिलता है--"निघंटुओं में इसका पता नहीं मिलता। कर्नल कीर्तिकर और मेजर बी. डी. वसु ने अपने ग्रंथ Indian अल्लईकुसुम Medical Plants में इसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार दिया है। अलईकुसुम (अल्लका कुसुम) जलधनियां नाम-पंजाब की ओर हिन्दी में अल्ली पल्ली और लेटिन में प०१७।१२७ एसपरगस फायलिसिनस Asparagus Filicinus कहते विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में पीले रंग की उपमा के लिए अल्लईकुसुम शब्द का प्रयोग हुआ है। जलधनियां के पुष्प पीले उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय के समशीतोष्ण प्रदेशों में रंग होते हैं। (जहां जहां अलियार नामक वनौषधि होती है।) तीन हजार देखें अल्लकीकुसुम शब्द। फीट से ८५०० फीट की ऊंचाई पर प्रायः काश्मीर से भूटान तक तथा पंजाब, आसाम, वर्मा और चीन में बहुतायत से पाई अल्लकीकुसुम जाती है विवरण-अलियार के समान ही इसका छोटावृक्ष होता अल्लकी कुसुम (अल्लका कुसुम) जल धनियां रा०२८ है। शाखायें इधर-उधर से विस्तार से फैली और चिकनी फसलदार होती हैं। औषधि कार्यार्थ विशेषतः इसकी जड़ ली अल्लका।स्त्री। धान्यके। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०७७) जाती है। इसकी जड़ बलवर्धक, पौष्टिक तथा संकोचक समझी विमर्श-अल्लकाशब्द वैद्यकनिघंटु में है। उपलब्ध न होने जाती है। चेचक या शीतला माता के प्रकोप में जैसे रोगी के से उसके पर्यायवाची नाम नहीं दिये जा रहे हैं। प्रस्तुत प्रकरण हाथों में अलियार की डाली थामाई (पकडाई या धराई ) जाती राई जाती में अल्लकीकुसुम पीले रंग की उपमा के लिए प्रयुक्त हुआ है। है, तैसे ही इसकी भी डाली उसके हाथों में देने से वह शीघ्र जल धनियां के पुष्प पीले रंग के होते हैं। हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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