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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 313 जाता है। भगवान महावीर ने ज्वरदोष को मिटाने के लिए जलकरङ्कः ।पुं। नारिकेल फल। इस शाक को मंगाया था। त्रिदोषघ्न और ज्वरनाशक इस (शालिग्रामौषधशब्दसागर पृ०६७) शाक के गुण हैं। णखीमंस जलयरमंस णखीमंस (नखीमांस) बड़े बेर का गुदा। उन्नाव जलयरमंस (जलचरमांस) अतीस, अतिविषा बेर का गुदा सू०१०/१२० सू०१०/१२० नखी के पर्यायवाची नामजलचरः (चारी (इन) पुं। शङ्ख ।मत्स्ये। बदरी दृढबीजा च, कण्टकी सुफलापि च। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ४५५) नखी व्याघ्रनखी घोण्टा, कोली गुडफलापि च।। शङ्ख |पुं० [क्ली। तन्नामकस्थावरविषभेदे। स बदरी, दृढबीजा, कण्टकी, सुफला, नखी, अतिविषासदृशः । शृङ्गीविषे, दारुमोचभेदे वा । सामुद्रकोषस्थ व्याघ्रनखी, घोण्टा, कोली, गुडफला ये बदरी के जन्तुविशेषे। पर्यायवाची नाम हैं। (शा०नि०फलवर्ग०पृ०४६६) (वैद्यकशब्द सिन्धु पृ०१०१८) अन्य भाषाओं में नामविमर्श-जलचर के अनेक अर्थों में एक अर्थ शंख हि०-उन्नाव। अं०-Jujube (जुजुब)। है। शंख के भी अनेक अर्थ हैं। उनमें एक अर्थ शृंगी विष ले०-Zizyphus Sativa gaertn (झिझीफस् सटाइवा) Zहै प्रस्तुत प्रकरण में हम भंगी विष का अर्थ ग्रहण कर Vulgaris linn (झि०बल्गेरिस)| Fam. Rhamnaceae रहे हैं। (हम्नेसी)। श्रृंगी विष के पर्यायवाची नाम उत्पत्ति स्थान-यह पंजाब हिमालय में ६५०० फीट विषा त्वतिविषा विश्वा, शृङ्गी प्रतिविषाऽरुणा। तक, पूर्व में बंगाल तक, उत्तर पश्चिम सीमान्त प्रदेश शुक्लकंदा चोपविषा, भङ्गुरा घुणवल्लभा। न में होता है। अधिकतर चीन, ईरान आदि विषा, अतिविषा, श्रङ्गी, प्रतिविषा, अरुणा, शुक्लकंदा, देशों से ये आते हैं। उपविषा, भंगुरा और घुणवल्लभा ये सब अतीस के संस्कृत विवरण-इसका वृक्ष छोटा तथा कांटेदार होता है। नाम हैं। पत्ते अंडाकार या गोल होते हैं। पुष्प सितम्बर के अंत (भाव०नि० हरीतक्यादिवर्ग० पृ० १२६) में छोटे हरिताभ श्वेत आते हैं। फल लाल, बहुत झुरींदार देखें माढरी शब्द। १ से १.५ इंच लम्बा, १ इंच चौड़ा, बेर की तरह गोल रहता है। जिसका गूदा गुठली से चिपका हुआ मीठा, जलयरमंस पीला तथा हलका होता है। गुठली लम्बी कड़ी झुर्रादार जलयरमंस (जलकरमांस) जलकर वृक्ष, होती है। इनके पत्तों को चबाने से सभी प्रकार के स्वाद का ज्ञान ५ से २० मिनट के लिए समाप्त हो जाता है। नारियलफल का गूदा (भाव०नि० आम्रादि फलवर्ग०पृ०५७२) सू०१०/१२० विमर्श-जलचर की छाया जलकर करके दूसरा तित्तिरमंस अर्थ नारियल कर रहे हैं। जलकर शब्द नहीं मिलता, तित्तिर (तित्तिरि) मेथी या केर जलकरंक शब्द मिलता है। इसलिए जलकरंक शब्द का सू०१०/१२० अर्थ दे रहे हैं। तित्तिरि के पर्यायवाची नाम वर्तको वर्तिका चैव. तित्तिरिःक्रकरः शिखी।।१०४६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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