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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश लालविरबिटा. अर्जकः (पुं) क्षुद्रतुलसीवृक्षभेदे। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ६९) अर्जक के पर्यायवाची नाम - अर्जकः क्षुद्रतुलसी, क्षुद्रपर्णी मुखार्जकः । उग्रगन्धश्च जम्बीरः, कुठेरश्च कठिञ्जरः ॥१५६॥ अर्जक, क्षुद्रतुलसी, क्षुद्रपर्णी, मुखार्जक,उग्रगन्ध, जम्बीर, कुठेर तथा कठिञ्जर ये सब अर्जक के नाम हैं। (राज० नि० १०।१५६ पृ० ३२९) अन्य भाषाओं में नाम - हि०-बाबरी। म०-आजबला। क०-कगोर्गले। ते०तेल्लगगेरचेटु। ता०-गगेर। गो०-वावुई तुलसी। भाव प्रकाशकार ने तुलसी के ३ भेद माने हैं (१) सफेद पुष्प तुलसी (२) कृष्ण पुष्प तुलसी (३) वट पत्र। अर्जक को सफेद पुष्प वाली वनतुलसी माना है - तत्र शक्लेर्जकः प्रोक्तो वटपत्र स्ततोऽपरः। (भाव० नि० पुष्पवर्ग पृ० ५११) ALIGARH उत्पत्ति स्थान-यह शहर या गांव के बाहर बागों या जंगलों में बिना बोए ही उत्पन्न होता है। यह प्राय: भारतवर्ष के सब प्रान्तों में ३००० फीट तक पाया जाता है। विवरण-इसका क्षुप स्वावलंबी १ से ३ फीट ऊंचा तथा शाखाएं कुछ आरोहणशील एवं पर्यों के ऊपर मोटी होती है। पत्ते चौलाई के पत्तों की तरह कुछ गोल, अंडाकार, नोकीले एवं १ से ५ इंच लम्बे होते हैं। इसके पत्तों और कांटों पर बहुत सूक्ष्म सफेद-सफेद रोम होते हैं। पुष्प दंड लगभग डेढ फुट तक लम्बा होता है उस पर कुछ लाल गुलाबी पीलापन लिए हुए फूल निकलते हैं। उसी दंड पर कांटेदार छोटे-छोटे फल उल्टे लगते हैं। ये कांटेदार फल कपड़े पर चिपट जाते हैं। इसलिए कहीं-कहीं इसे कत्ता नाम से भी पुकारते हैं। जब फल पक जाते हैं तो इनके अन्दर से चावल निकलते हैं। (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग पृ० ४१५) AN PM अज्जय अजय (अर्जक) बाबरी, तुलसी का एक भेद उत्पत्ति स्थान-यह तुलसी बंगाल, बिहार, आसाम, मध्य भारत से दक्षिण में सीलोन तक के मैदानों में तथा छोटे पहाड़ों पर अधिक पाई जाती है। बाग बगीचों के आसपास प्राय:जंगली या अर्द्ध जंगली अवस्था में बहुत उगती है। पंजाब प०१४४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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