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________________ 284 जैन आगम : वनस्पति कोश पापस शाखायें प्रायः मुरचई रंग की होती है। पत्ते अण्डाकार वन, उपवन और वाटिकाओं में उत्पन्न होता है। या चौड़ाई लिये हुये आयताकार, तीक्ष्णाग्र या कुछ-कुछ विवरण-इसके वृक्ष बहुत विशाल और मोटे हुआ लम्बाग्र, चिकने, २ से ३ इंच लम्बे तथा ३/४ से १५ करते हैं। डालियों पर छोटे-छोटे नुकीले कांटे होते हैं। इंच चौड़े एवं १/४ इंच लम्बे वृन्त से युक्त होते हैं। पुष्प सतिवन के पत्तों के समान इसके पत्ते एक-एक डंडी १ से ३ इंच लम्बी पुष्पमंजरियां पत्रकोण या शाखाग्र से के अंत में ५ से ७ फैले हुए होते हैं। फूल लाल । पुष्पदल निकलती रहती हैं, जिनमें छोटे-छोटे श्वेत सुगंधित मोटा, लुआवदार एवं २ से ३ इंच तक लम्बा होता है। रहते हैं। आभ्यन्तर दलों के खण्ड रोमश एवं मरोडे हुए फल ५ से ६ इंच लम्बे, लम्बगोलाकार काष्ठवत् एवं हरे रहते हैं। फलियां लम्बी एवं दो-दो एक साथ रहती हैं। होते हैं और उनके भीतर रेशम जैसी रुई तथा काले बीज बीज नालीदार एवं रोमगुच्छ से युक्त होते हैं। इसकी होते हैं। इसके १ से १.५ साल के छोटे वृक्ष के मूल निकाल जड़ अनन्तमूल जैसी ही दिखलाई देती है। इस पर की कर सुखा लेते हैं, जिन्हें सेमल मूसली कहा जाता हैं। छाल कृष्णाभ भूरे रंग की एवं काष्ठ से चिपकी रहती (भाव०नि० वटादिवर्ग०पृ०५३७) है। काष्ठभाग अनन्तमूल की अपेक्षा अधिक कड़ा रहता है। क्वचित् यह फटी हुई रहती है। इसमें अनन्तमूल जैसी सार गन्ध नहीं रहती। (भाव०नि०गुडूच्यादिवर्ग०पृ४२७) सार (सार) सारवृक्ष, खदिर, खैर भ०२२/१ प०१/४३/१ सामलया विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में सार शब्द वलयवर्ग के सामलया (श्यामलता) कृष्ण सारिवा अन्तर्गत है। खदिर की छाल ३/४ इंच मोटी होती है। ओ०११ जीवा०३/२६६, ५८४ जं०२/११ सार के पर्यायवाची नामदेखें सामलता शब्द । खदिरो बालपत्रश्च, खाद्यः पत्री क्षिती क्षमा ।। सुशल्यो वक्रकण्टश्च, यज्ञाङ्गो दन्तधावनः ।।२१।। सामलि गायत्री जिह्मशल्यंश्च, कण्टी सारद्रुमस्तथा। सामलि (शाल्मलि) सेमर। ठा०१०/८२/१ कुष्ठारि बहुसारश्च, मेध्यः सप्तदशाह्वयः ।।२२।। खदिर, बालपत्र, खाद्य, पत्री, क्षिती, क्षमा, शाल्मलिस्तु भवेन्मोचा, पिच्छिला पूरणीति च । सुशल्य,वक्रकण्ट,यज्ञाङ्ग, दन्तधावन, गायत्री, जिह्मशल्य, रक्तपुष्पा स्थिरायुश्च, कण्टकाढ्या च तूलिनी।।५४।। कण्टी, सारद्रुम, कुष्ठारि, बहुसार तथा मेध्य ये सब शाल्मलि, मोचा, पिच्छिला, पूरणी, रक्तपुष्पा, खदिर (खैर) के सतरह नाम हैं। स्थिरायु, कण्टकाढ्या तथा तूलिनी ये सब सेमर के (राज०नि०८/२१,२२ पृ०२३५) संस्कृत नाम हैं। (भाव०नि० वटादिवर्ग० पृ०५३७) अन्य भाषाओं में नामअन्य भाषाओं में नाम हि०-खैर, कत्था। बं०-खयेरगाछ। म०-खैर, हि०-सेमर, सेमल । बं०-शिमुल गाछ, रक्ती काय । गु०-खेर, काथो। ते०-चंड। ता०-करंगालि। सिमुल । म०-कांटे सांवर, लालसांवर । गु०-शेमलो, अंo-Black catechu (ब्लैक कॅटेच्यु)। ले०-Acacia सीमुलो। ते०-बुरुगचेटु । ता०-शालवधु । मा०-शेमल, सरमलो। अंo-Silk Cotton Tree (सिल्क काटन ट्री)। Catechu Willd (अॅकेसिया कटेच्यु) Fam. Leguminosae (लेग्युमिनोसी)। sto-Bombax malabaricum DC. (014 och उत्पत्ति स्थान-यह भारत में अनेक स्थानों पर मालावारिकम्) Fam. Bombacaceae (बाम्बेकेसी)। होता है। पंजाब, उत्तर पश्चिम, हिमालय, मध्य भारत, उत्पत्ति स्थान-इस देश के प्रायः सब प्रान्तों के । बिहार, गंजम, कोंकण एवं दक्षिण में विशेषरूप से शुष्क Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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