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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 277 राजस्थान में, उदयपुर जिले की ऐरावली पर्वत श्रेणियों चिकने और चमकदार होते हैं। इनमें कुछ गोल और कुछ में बहुत होती है। तिकोने होते हैं। बीज १ से २ तक निकलते हैं। ये रंग में काले, व्यास १/४ इंची। कंद में से सैकड़ों उपमूल निकलते हैं। ये उपमूल अंगुली जैसे मोटे १ से १.५ फीट लंबे, धूसर, पीले, स्वाद में मधुर, फिर कडवे, वास कुछ कडवी। एक-एक बेल के नीचे से शतसंख्या या जड़ समूहों से दश-दश सेर तक शतावरी की जड़ें प्राप्त हो जाती है। इन जड़ों के ऊपर भूरे रंग का पतला छिलका रहता है। इस छिलके को निकाल देने पर भीतर से दूध के समान सफेद रंग की जड़ें निकलती है। इस मूल के बीच में कडा एक रेशा होता है जो गीली और सूखी अवस्था में निकाला जा सकता है। कंद के ऊपर की ओर जमीन पर बेल के तने और जमीन में लंबे सूतली से अंगुली के समान मोटी जड़ें निकलती हैं। तने का छिलका हटाने पर अन्दर का भाग हरा होता है। कंद प्रतिवर्ष बढ़ता जाता है और अनेक वर्षों तक रहता है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ० २०८, २०६) .. .. सर सर (शर) रामसर भ० २१/१८ प० १/४१/१ विवरण-यह गुडूच्यादिवर्ग और पलाण्डुकुल की एक लता होती है। ग्रीष्मारंभ में निकलने वाली छोटी कांटेदार कंद युक्त बेल । १ से १.५ गज बढ़ने पर एक ओर मुडकर बाड़ या वृक्ष पर बहत ऊंची चढ जाती है। इससे कुछ अंतर पर कांटे तीक्ष्ण, पाव से आधा इंच लंबे, वक्राकृति होते हैं। शाखायें चारों ओर अत्यधिक फैली हुई। पत्र पुष्पविहीन, लता देखने में कांटे वाली सफेद डांडी (तना) जैसी दिखाई देती है। पत्र शाखा एकान्तर २ से ६ इंच तक। इसके पत्ते बहत महीन पौन से एक इंच लंबे सोया के पत्तों की तरह होते हैं। इसके फूल नवम्बर में सफेद सुगन्धित और छोटे होते हैं। पुष्पमंजरी (तुर्रा १ से २ इंच लंबा) पुष्पव्यास १/१२ से २ लाइन जितना होता है। पुष्प एक ही वक्त हजारों खिलते हैं, जिससे इसकी सारी लता सफेद दिखाई देती है। बाह्यान्तर कोष ६, पुंकेसर ६ पराग कोष हलका पीला और परागरज केसरिया रंग की होती है। स्त्रीकेसर १, गर्भाशय हरे पीले रंग का । फल शीतकाल के अंत में लाल रंग के छोटे आते हैं। ये काली मिर्च या चने के दाने जैसे 50 . 374. Vallaris heynei Spreng. (शमनमानो) शर के पर्यायवाची नाम सञ्ज: शरो वाण स्तेजन श्वेक्षवेष्टनः ।।१५८ ।। भद्रमुंज, शर, वाण, तेजन और इक्षुवेस्टन ये सब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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