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________________ 8 द्विखण्ड वृत्ताकार और मध्यपर्शुक पर बिना गांठ के होते हैं। इसके फल गुलहम्माज के नाम से बिकते हैं, जो रक्ताभ भूरे रंग के लगभग ६ से १० इंच लम्बे होते हैं। चुक्र बीज गाढे भूरे रंग के तथा रूपरेखा में त्रिकोणाकार और चिकने चमकीले होते हैं। चुक्र एवं चांगेरी दोनों के ही पौधे स्वाद में खट्टे होते हैं, जिससे ग्रन्थकारों ने कहीं-कहीं भ्रम से इन्हें पर्याय रूप से लिख दिया है। किन्तु दोनों भिन्न-भिन्न द्रव्य हैं। चूका एक प्रसिद्ध खट्टा साग है। ( वनौषधि निदर्शिका पृ० १५४) अक्क अक्क (अर्क) लाल पुष्पवाला आक। प० १।३७ ३ विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण अक्क शब्द गुच्छवर्ग के अन्तर्गत है । इससे दो श्लोक पहले प० १।३७।१ में रूवी शब्द आया है। रूवी शब्द सफेद आक का वाचक है। इसलिए यहां अक्क शब्द का अर्थ रूवी से भिन्न लाल पुष्प वाला आक ग्रहण किया जा रहा है। अर्क के पर्यायवाची नाम - रक्तोऽपरोर्कनामा स्यादर्कपर्णो विकीरणः । रक्तपुष्प: शुक्लफल स्तथाऽस्फोटः प्रकीर्त्तितः ॥६८॥ रक्तार्क, अर्कनामा ( सूर्य के वाचक सभी शब्द इसके पर्यायवाचक हैं) अर्कपर्ण, विकीरण, रक्तपुष्प, शुक्लफल तथा आस्फोट ये लाल आक के संस्कृत नाम हैं। (भाव० नि० गुडूच्यादिवर्ग पृ० ३०३) अन्य भाषाओं में नाम - हि० - आक, मदार । म० उबार, उबर । फा०- खरक, जहूक । अंo - Mudar (मडार) | Gigantic Swaliow wort (जायगांटिक स्वालो वार्ट) । ले० - Calotropis Gigantea (केलोट्रोपिस जायगेन्टिका ) । Jain Education International आक (लाल) जैन आगम : वनस्पति कोश अर्कनामानि उत्पत्ति स्थान - लाल आक बंगाल के निचले भागों में, राजपूताना, उत्तर प्रदेश तथा पंजाब, मध्य प्रदेश, बंबई, कच्छ, काठियावाड, गुजरात आदि दक्षिण भारतवर्ष, सिंध तथा मध्य भारत में प्राय: सर्वत्र खंडहर, जंगल, उजाड एवं ऊसर भूमि में बहुतायत से पाया जाता है। विवरण- लाल आक का क्षुप २ से ६ हाथ तक ऊंचा, बहुमुखी और प्रायः गरमी के दिनों में ही हराभरा फल से युक्त होता है। लाल आक में दूध कम रहता है। लाल आक की जड़े मूसलीदार और शाखायुक्त होती है। ये शाखायुक्त जड़े सूखने पर असगंध जैसी ही मालूम देती है। जड़ के बाहर की या ऊपर की छाल विशेष मोटी और खुरदरी होती है। छाल, पत्ते, दूध आदि का स्वाद कडुवा, चरपरा, जी मिचलाने वाला तथा गंध उग्र होता है। प्रकांड और शाखाएं कुछ खाकी रंग की थोड़ीथोड़ी दूरी पर गांठदार होती है। इन्हें तोडने पर दूध टपकने लगता है। हरे पेड़ के प्रत्येक प्रदेश से तोड़ने पर दूध निकलता है। तना और प्रधान शाखा की छाल बहुत हलकी, शोले की तरह नरम और विदीर्ण होती है। पत्र सम्मुखवर्ती होते हैं। पत्र वरगद के पत्र जैसे ३ से ६ इंच तक जोड़े होते हैं। पत्रों का उदरभाग ऊन जैसे श्वेत क्षारमय रोवों से घना व्याप्त रहता है। आक के इस सारभाग और दूध में ही विशेष घातक विष के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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