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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 251 वर्ग के अन्तर्गत है। इसलिए लवंग शब्द न होकर लवंगरुक्ख शब्द है, जिसकी छाल होती है। है। विशेषकर पश्चिमोत्तर प्रदेश, गढ़वाल, कुमाऊं, पंजाब एवं काश्मीर आदि में अधिक उत्पन्न होता है। विवरण-इसका बहुवर्षायु क्षुप करीब १ फुट तक ऊंचा होता है। पत्र चिपटे लम्बे, १ इंच से चौड़े एवं इनका अग्र लम्बा होता है। पत्रकोश ३ से ४ इंच लम्बा होता है तथा पुष्प व्यूह को घेरे रहता है। पुष्पव्यूह सवृन्त मूर्धजा, छोटे, घने एवं पतले, शुष्क कोणपुष्पकों से युक्त होते हैं। इसके कंद को लहसुन कहा जाता है। जिसके अन्दर ८ से २० जावा होते हैं। इसमें एक विशिष्ट प्रकार की तीव्रगंध तथा इसका स्वाद विशिष्ट प्रकार का होता (भाव०नि०हरीतक्यादिवर्ग०पृ० १३२) लसणकंद लसणकंद ( ) लहसुनकंद उत्त०३६/६७ विमर्श-लसण शब्द गुजराती और मारवाड़ी भाषा का है। संस्कृत में लशुन शब्द है। लशुन के पर्यायवाची नाम लशुनस्तु रसोनः स्याद्, उग्रगन्धो महौषधम्।। अरिष्टो म्लेच्छकन्दश्च, यवनेष्टो रसोनकः ।।२१७।। लशुन, रसोन, उग्रगन्ध, महौषध, अरिष्ट, म्लेच्छकन्द यवनेष्ट, रसोनक ये नाम लहसुन के हैं। (भाव०नि० हरीतक्यादि वर्ग पृ०१३०) अन्य भाषाओं में नाम हि०-लहसुन, लशुन | बं०-रसुन | म०-लसूण। क०-बेल्लुल्लि । ते०-वेल्लुल्लि , तेल्ललिगड्डा । ता०- बल्लइपुंडु । गु०-लसण । सिधि०-पोम | आसा०-नहरू। भोटि०-गोक्पस । फा०-सीर । अ०-सूमफूम । यू०- स्कूइँन | अं०-Garlic (गार्लिक) । ले०-AlliumSativum linn (एलियम् सटाइवम् लिन०) Fam. Liliaceae (लिलिएसी)। लोद्ध लोद्ध (लोघ्र) लोध भ०२२/३ ओ०६ जीवा०१/७२:३/५८३ प०१/३६/३ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में लोद्ध शब्द बहुबीजक वर्ग के अन्तर्गत है। लोध की गुठली में दो-दो बीज होते है। लोध्र के पर्यायवाची नाम लोध्रो रोध्रः शाबरकस्तिल्वकस्तिलकस्तरुः । तिरीटक: काण्डहीनो, भिल्ली शम्बरपादपः ।।१५५।। लोध्र, रोध्र,शाबरक, तिल्वक, तिलक, तिरीटक, काण्डहीन, भिल्ली, शम्बरपादप ये लोध्र के पर्याय हैं। (धन्व०नि० ३/१५५ पृ०१७८) अन्य भाषाओं में नाम हि०-लोध । बं०-लोध, लोध्र । म०-लोध, लोध्र। क०-लोध, लोध्र । गु०-लोधर। ते०-लोदधगचेट् । अ०-मुगाम |so-Symplocos Bark (सिम्प्लोकोस् बाक) Lodh (लोध)। ले०-Symplocos racemosa, Roxb (सिम्प्लोकॉस् रेसिमोसा राक्स) Fam. Symplocaceae (सिम्प्लोकेसी)। उत्पत्ति स्थान-यह भारत के पूर्वोत्तर प्रान्त नेपाल, कुमाऊं से आसाम, बंगाल, छोटा नागपुर, वर्मा आदि प्रदेशों के जंगल और छोटे पहाड़ों में पाया जाता है। विवरण-यह हरीतक्यादिवर्ग और लोध्रादि कुल का एक छोटी जाति का हमेशा हरा रहने वाला वक्ष होता L Bane ICAL 607. Allium Sativum Linn. (1 ) उत्पत्ति स्थान-यह प्रायः सब प्रान्तों में बोया जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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