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________________ जैन आगम वनस्पति कोश विमर्श - रालग शब्द प्रस्तुत प्रकरण में ओषधिवर्ग (धान्य नामों) के अन्तर्गत है । अगस्त्यचूर्णि में, काली लाल और सफेद कंगु का नाम रालक है इसलिए यहां कंगू धान्य के भेद अर्थ ग्रहण किया गया है। निघंटुओं में इसका अर्थ नहीं मिला है । रिट्ठग रिट्ठग (रिष्टक) रक्तशिग्रु, लालसहिजना उत्त० ३४/४ रिष्टकः । पुं । रक्तशिग्रुवृक्षे । (वैद्यक शब्द सिंधु पृ० ८६८) विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में रिट्टगशब्द काले रंग की उपमा के लिए प्रयुक्त हुआ है। सहिजना के रंग के होते हैं। पुष्प काले रुरु रुरु ( रूरू) वन रोहेडा प० १/४८/२ रुरु । पुं। (सं) एक फलदार वृक्ष । ( बृहत हिन्दी कोश) रुरु पुं । वनरोहीतके । ( वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ८६८) रूवी रूवी (रूपी) सफेदआक रूप (पी) का । स्त्री० । महार्कवृक्षे. श्वेतार्के । Jain Education International प० १/३७/१ (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ८६८) विमर्श-रूपी शब्द और रूपिका शब्द दोनों स्त्रीलिंग शब्द हैं और एक समान हैं। रूपी शब्द निघंटुओं में उपलब्ध न होने से रूपिका के पर्यायवाची नाम दे रहे हैं । रूपिका के पर्यायवाची नाम सूर्याह्वोर्क: सदापुष्पी, रूपिकासूर्यपुष्पकः । । १५३१ । । आस्फोता जंभला क्षीरी, क्षीरपर्णो विकीरणः । क्षतक्षीरी दुग्धिनिका, पुष्पी कीरतनूफलः । ।१५३२ ।। सूर्याह्व, सदापुष्पी, रूपिका, सूर्यपुष्पक, आस्फोता. जंभला, क्षीरी, क्षीरपर्ण, विकीरण क्षतक्षीरी, दुग्धिनिका, पुष्पी, कीरतनूफल ये अर्क के पर्याय हैं। 247 (कैयदेव०नि० ओषधिवर्ग० पृ० ६३० ) अन्य भाषाओं में नाम हि० - मंदार, सफेद आक । ब० - आनंद, श्वेत आकंद । म० - रूई, आक। गु० - आकडो । क० - एक्क, मंदारपक्के | ते० - मंदारमु, जिल्लेडु । ता०- बदाबडम, एक्कु । मल०- एरिक्का । अ० - उषर, उषार । फा० - खरक, जहूक | अंo - Mudar (मडार) Gigantic Swallow wort ( जायगॅन्टिक स्वॅलोवर्ट) । ले० - Calotropis gigantea (Linn) R. Br. ex Ait (कॅलोट्रोपिस् जाइगेन्टी लिन०) Fam. Asclepiadaceae (एस्क्लेपिएडॅसी) । आक. 2. ( सफद) For Private & Personal Use Only उत्पत्ति स्थान - यह हिमालय में ३००० फीट की ऊंचाई तक तथा पंजाब से लेकर दक्षिणभारत, आसाम, लंका एवं सिंगापुर में ऊसर भूमि में पाया जाता है। यह मलायाद्वीप तथा दक्षिण चीन में भी होता है । विवरण- इसका क्षुप या छोटा वृक्ष बहुवर्षायु तथा से १० फीट तक ऊंचा रहता है। पत्र अवृन्त मोटे, क्षोदलिप्त हरे रंग के, अंडाकार या अभिलट्वाकार आयताकार ४ से ५ इंच लंबे, डेढ़ से ४ इंच चौड़े एवं पर्णतल की तरफ संकुचित हृदयाकार या प्रायः कण्ड को घेरे रहते हैं। पुष्प १.५ से २ इंच व्यास के, गंधहीन तथा अन्तर्दल फैले हुए एवं नील लोहित या श्वेतरंग के होते हैं। फल करीब ४ इंच लंबे, मुडे हुए एवं फूलों से एक सेवनीक फल (Follicle) रहते हैं। बीज महीन सिल्क की तरह गुच्छेदार रूई से युक्त तथा छोटे एवं चिपटे होते हैं। इसकी शाखाओं तथा पत्रादि से दुग्ध निकलता है। (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग ० पृ० ३०४) www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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