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________________ 240 जैन आगम : वनस्पति कोश हैं। मूलापण्ण हैं। बीजों को सफेद मरिच भी कहते हैं। इससे गोंद भी निकलता है जो पहले दुधिया रहता है किन्तु बाद में वायु मूलापण्ण (मूलकपर्णी) सहिजन का संपर्क होने पर ऊपर से गुलाबी या लाल हो जाता सू०१०/१२० है। इसकी कच्ची सेमों का साग और अचार बनाते हैं। मूलकपर्णी के पर्यायवाची नाम इसकी छाल की रेशों से कागज, चटाई बोरी आदि बनाते शिगु हरितशाकश्च, दीर्घको लघुपत्रकः ।। हैं। जानवर (विशेषकर ऊंट) इसकी टहनियों को खाते अवदंशक्षमो दंशः, प्रोक्तो मूलकपर्ण्यपि।।३६।। (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग०पृ०३४०) शोभाअनस्तीक्ष्णगंधो, मुखभङ्गोथ शिग्रुकः। शिग्रु. हरितशाक, दीर्घक, लघुपत्रक, अवदंशक्षम, दंश, मूलकपर्णी, शोभाअन, तीक्ष्णगंध, मुखभङ्ग ये शिग्रु मेरुतालवण के पर्याय हैं। (धन्व०नि०४/३६,३७ पृ०१८६) मेरुतालवण ( ) जं०२/६ अन्य भाषाओं में नाम विमर्श-उपलब्ध निघंटुओं तथा शब्दकोशों में हि०-सहिजना, सहिजन, सहजन सहजना, मेरुताल शब्द उपलब्ध नहीं हुआ है। सैजन, मुनगा। बं०-सजिना। म०-शेवगा, शेगटा। मा०-सहिजनो, सहिंजणो। क०-नुग्गे। ते०-मुनग। मेरुयालवण गु०-सेकटो, सरगवो । ताo-मोरुङ्ग, मुरिणकै । पं0 मेरुयालवण ( ) जीवा०३/५८१ सोहजना। मला०-मुरिणा। ब्राह्री-डोडलों बिन। य०-सिनोह। फा०-सर्वकोही। अं0-Horse Radish Tree (हार्स रेडिशट्री) Drum Stick Tree (ड्रम स्टिकट्री)। मोकली ले०-Moringa Pterygosperma gaertn (मोरिङ्गा मोकली ( ) जंगली एरण्ड भ०२२/६ टेरीगोस्वपर्मा गेर्ट) Fam, Moringaceae (मोरिंगेसी)। देखें मोगली शब्द। उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय के निचले प्रदेशों में चेनाव से लेकर अवध तक जंगली रूप में तथा भारत के मोगली प्रायः सभी प्रान्तों में एवं वर्मा में लगाया हुआ मिलता है। मोगली ( ) जंगली एरण्ड, व्याघ्रएरण्ड विवरण-इसका वृक्ष साधारण वृक्षों के समान छोटा, २० से २५ फुट ऊंचा होता है । छाल चिकनी मोटी, प०१/४०/५ कार्कयुक्त, भूरे रंग की एवं लम्बाई में फटी हुई और मोगली।पुं। एक जंगली पेड़ (बृहत् हिन्दी कोश) लकड़ी कमजोर होती है। पत्ते संयुक्त प्रायः त्रिपक्षवत् विमर्श-व्याघ्र एरण्ड को मराठी भाषा में मोंगलीएरण्ड तथा १ से ३ फीट क्वचिद् ५ फीट तक लम्बे होते हैं। और हिन्द भाषा में जंगली एरण्ड कहते हैं। संभव है पत्रक अंडाकार, लट्वाकार, विपरीत एवं करीब ५ से प्रस्तुत मोगली शब्द व्याघ्रएरण्ड का ही वाचक हो ।अन्य ३/४ इंच लंबे होते हैं। कार्तिक महीने से वसन्त ऋतु भाषाओं में नामके आरंभ तक फूलों के गुच्छे टहनियों के अंत में दिखाई हि०-व्याफ्रेरण्ड, जंगलीएरंड । बं०-बागा भेरेंदा, पड़ते हैं। पुष्प श्वेतवर्ण के तथा मधु की तरह गंध वाले बाघभेरंड । म०-मोंगलीएरण्ड । गोवा०-गलमर्क । कोंक० होते हैं । फलियां गोल त्रिकोणाकार, अंगुलि प्रमाण मोटी, -काडएरडि । ता०-कट्टमनक्कु । ते०-अडविआमुदमु । ६ से २० इंच लम्बी, बीजों के बीच-बीच में पतली एवं क०-कडहरलु । अ०-डंडेनहरी फा०-डंडेनहरी ले०बड़ी-बड़ी खड़ी ६ रेखाओं से युक्त होती हैं। उनमें सफेद Jatropha curcas linn (जॅट्रोफा कर्कस् लिन०) Fam. सपक्ष त्रिकोणाकार तथा लगभग १ इंच लम्बे बीज होते Euphorbiaceae (युफोबिएसी)। . . . .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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