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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 219 मृणाल-फूल की नली जो ४ से ६ फुट तक लंबी अक्षोट के पर्यायवाची नामहोती है। उसे तोड़ने से अन्दर महीन सूत निकलते हैं। पीलुः शैलभवोऽक्षोट: कर्परालश्व कीर्तितः । इन मृणाल सूत्रों को शुष्क कर तथा बंटकर देवालयों में पीलु, शैलभव, अक्षोट, कर्पराल ये अखरोट के जलने को बत्तियां बनाई जाती हैं। प्राचीनकाल में इसके __संस्कृत नाम हैं। वस्त्र भी बनाये जाते थे। कहा जाता है कि इन मृणाल (भाव०नि० आम्रादिफलवर्ग० पृ० ५६१) वस्त्रों से ज्वर दूर हो जाता था। अन्य भाषाओं में नाम(धन्व० वनौ० विशेषांक भाग २ पृ० १३८.) हि०-अखरोट, अक्षोट, पहाडीपीलु बं०-आखरोट । पं०-अखरोट । म०-अक्रोड। गु०-आखरोड। ते०भुयरुक्ख अक्षोलमु। ता०-अक्रोटु। क०-आखोट। आसा० कवसिंग। फा०-चारमग्ज जिर्दगां। अ०-जोज हिन्दी, भुयरुक्ख (भूतवृक्ष) अखरोट भ० २२/१५० १/४३/२ जोजेजूल हिन्द, जोज ।अफगा०-उप्पस् । अंo-Walnut भूतवृक्षः ।पुं। शाखोटवृक्षे । श्योणाक वृक्षे । अक्षोट (वालनट)। ले०-Juglans regia Linn (जगलान्स रेजीया) वक्षे। श्लेषमान्तकवृक्षे। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ७५२) Fam. juglandaceae (जग्लैण्डेसी)। उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय के उष्ण भागों में ३ से १० हजार फीट तक एवं खासिया पर्वत तथा बलूचिस्तान में होता है। कश्मीर में इसकी बहुत उपज की जाती है। विवरण-इसका वृक्ष ऊंचा होता है तथा छाल धूसर एवं लम्बाई में फटी होती है। शाखाओं पर मृदु रजावरण होता है। पत्ते असमपक्षवत्, एकान्तर तथा ६ से १५ इंच लंबे होते हैं। पत्रक संख्या में ५ से १३, दीर्घवृत्ताभ से लेकर आयताकार भालाकार ३ से ८ x १.५ से ४ इंच बड़े, न्यूनाधिक विनाल एवं प्रायः अखण्ड होते हैं। पुष्प छोटे पीताभ हरे एवं एकलिंगी होते हैं। फल कुछ लंबाई लिये कुछ गोल एवं २ इंच व्यास में एवं बाह्यस्तर हरा तथा चर्मवत् रहता है। इसके अन्दर अन्तस्तर कठोर काष्ठीय सिकुडनदार एवं दो कोष्ठ युक्त होता है। जिसमें ४ खंड वाला तैल से भरा हुआ, टेढ़ा, मेढ़ा, धूसर श्वेत रंग का बीज होता है। इन्हीं बीजों को लोग खाते हैं। इसकी छाल डण्डासा के नाम से बिकती है। (भाव०नि० आम्रादि फलवर्ग० पृ० ५६२) ममता विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में भुयरुक्ख शब्द वलयवर्ग के अन्तर्गत है। अक्षोटवृक्ष की छाल रंगने और दवा के काम आती है। इसलिए ऊपर लिखित ४ अर्थों में अक्षोट वृक्ष का अर्थ ग्रहण किया जा रहा है। भुस भुस (वुस) भुस, भुसा भ० २१/१६ प० १/४२/१ वुष (स)म् क्ली० । तुषे । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ७३६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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