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________________ 186 जैन आगम : वनस्पति कोश पाववल्ली तथा सूखने पर काले तथा संख्या में लगभग १० होते (भा०नि० गुडूच्यादि वर्ग० पृ०२६७,२६८) पाववल्ली (पापवल्ली) माषपर्णी, उडदबेल प०१/४०/२ पापः |पुं। माषपाम् । वैद्यक निघंटु । पासिय (वैद्यकशब्द सिन्धु पृ०६५६) पासिय (पाशिका) पाशिकावृक्ष, दक्षिण का एक विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में पाववल्ली शब्द वल्लीवर्ग प्रसिद्ध वृक्ष भ०२२/२ के अन्तर्गत है। पापशब्द का वानस्पतिक अर्थ माषपर्णी पाशिका स्त्री० । वृक्ष दाक्षिणात्येषु प्रसिद्धा वैद्यक शब्द कोश में है तथा पर्यायवाची नाम केवल वैद्यक (अष्टांग संग्रह उत्तरस्थानम् ६ आयुर्वेदीय शब्दकोश पृ०८६१) निघंटु में मिलता है। उसके उपलब्ध न होने से उसके पर्यायवाची नाम नहीं दिए जा रहे हैं। मासपर्णी बेल होती पिंडहलिद्दा है। गुजराती में उसे उड़द बेल कहा गया है। माषपर्णी के पर्यायवाची नाम पिंडहलिद्दा (पिण्डहरिद्रा) गोलगांठों वाली हलदी। माषपर्णी सूर्यपर्णी, काम्बोजी हयपुच्छिका। भ०७।६ जीवा० १/७३ पाण्डुलोमशपर्णी च, कृष्णवृन्ता महासहा।। पिण्डहरिद्रा ।स्त्री। ग्रन्थिहरिद्रायाम्। वैद्यक माषपर्णी, सूर्यपर्णी, काम्बोजी, हयपुच्छिका, (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०६६६) पाण्डुलोमशपर्णी, कृष्णवृन्ता और महासहा ये सब संस्कृत विवरण-हलदी का मुख्य कंद प्रायः गोलाकार नाम उडद के है। (भाव० नि० पृ० २६७) गांठदार होता है। जिससे छोटी अंगुली की भांति अन्य भाषाओं में नाम लम्बगोल शाखाएं लगी होती हैं। व्यवसायी प्रायः इन हिo-मषवन, माषोनी, वनउडदी, जंगलीउड़द । दोनों प्रकार की गांठों को पृथक-पृथक बेचते हैं। लम्बी बं०-माषानी। म०-रानउड़ीद। गुं०-जंगली अड़द। हलदी गोल की अपेक्षा अधिक अच्छी समझी जाती है। क०-काडडयु, काडुलंद । ते०-रानोडिंडु, कारुमिनुरु । (वनौषधि निदर्शिका पृ०४०२) ता०-कटु अलदूं। ले०-Teramnus labialis Spreng (टेरॅम्नस् लेबिएलिस् स्प्रेग) Fam. Leguminosae पिप्परि (लेग्युमिनोसी)। उत्पत्ति स्थान-यह सब प्रान्तों के जंगलों, झाड़ियों पिप्परि (पिप्पलि) पीपल, पीपर प०१/३६/२ में कहीं न कहीं उत्पन्न होती है। पिप्पलि (ली), स्त्री। स्वनामख्यातपण्यद्रव्ये । विवरण-यह लता जाति की वनौषधि झाड़ियों पर (वैद्यकशब्द सिन्धु पृ०६७३) लिपटती हुई (चक्रारोही) बढती है और वर्षा ऋतु में पिप्पलि के पर्यायवाची नामअधिक पाई जाती है। पत्ते त्रिपत्रक और पत्रक पिप्पली मागधी कृष्णा चपला तीक्ष्णतण्डुला।। भिन्न-भिन्न कद के होते हैं । पत्रक कभी ०.६ से १.३ इंच उपकल्या कणा श्यामा, कोला शौण्डी तथोषणा।७३।। और कभी १ से ३ इंच लम्बे होते हैं। ये अंडाकार या पिप्पली, मागधी, कृष्णा, चपला, तीक्ष्णतण्डुला, लट्वाकार (अग्यपत्रक कभी-कभी अभिलट्वाकार, नीचे उपकुल्या, कणा, श्यामा, कोला, शौण्डी और ऊषणा ये के तल पर तलशायी रोमों से युक्त होते हैं। सवृन्त पुष्पों पिप्पली के पर्याय हैं। (धन्व०नि०२/७३ पृ०१२५) की मंजरी बहुत पतली १.५ से ५ इंच लम्बी और पुष्प अन्य भाषाओं में नामगुलाबी, नीलारुण या सफेद होते हैं। फली पतली लम्बी हि०-पीपर, पीपल। बं०-पीपुल, पिपुल । सीधी या कुछ टेढी होती है। बीज ताजी अवस्था में लाल म०-पिंपली। गं०-पीपर, लीडीपीपल, लिंडी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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