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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 153 तुंबी com melan देखें कदुइया शब्द। अन्य भाषाओं में नाम हिo-तुलसी। बं०-तुलसी गु०-तुलसी। तेल गग्गेरचेटु । म०-तुलस। ता०-तुलशी। क०-एरेड तुंबी (तुम्बी) कड़वी तुम्बी, भ० २२/६ प० १/४०/१ तुलसी । अंo-Holy Basil (होली वेसील)। ले०-Ocimum Sanctum Linn (ओसीमम् सेंक्टम्) Fam. Labiatae तुम्बी के पर्यायवाची नाम (लेबिटएटी)। कटुकालाम्बुनी तुम्बी लम्बा पिण्डफला च सा। इक्ष्वाकुः क्षत्रियवरा, तिक्तबीजा महाफला।। तुम्बी, लम्बा, पिण्डफला, इक्ष्वाकु, क्षत्रियवरा, तिक्तबीजा महाफला ये कटुकालाम्बुनी के पर्याय हैं। (धन्व०नि०१/१७० पृ० ६६) अन्य भाषाओं में नाम हि०-कटुलौकी, कडवी तोंबी, तितलौकी, तितुआ लौका, तुमरी, तुम्बी। बं०-तितलाउ, तितलाओ । म०-कडुभोपला । गु०-कड़वी तुम्बरी । क०-कहिसोरे। फा०-कदूय तल्ख । अ०-कर अउलमुर, करउबमुर । अ०-Bitter Gourd (विटरगोर्ड)। ले०-Lagenaria Vulgaris Ser (लॅगेनेरिया वल्गेरिस | Fam.Cucurbitaceae (कुकरबिटेसी)। __उत्पत्ति स्थान-यह भारतवर्ष में प्रायः सर्वत्र उत्पत्ति स्थान-इसके पौधे समस्त भारत में बगीचों जंगलों में, गांवडों में पाई जाती है। कहीं-कहीं यह लगाई । में मंदिरों के पास एवं घरों में लगाये जाते हैं। यह सर्वत्र भी जाती है। इसकी बेल या लता बहुत दूर तक फैलती सुलभ एवं प्रसिद्ध है। कहीं-कहीं यह जंगली रूप से भी है। इसके तंतु लंबे एवं दो शाखा युक्त होते हैं। पायी जाती है। विवरण-इसकी लता पत्र पुष्पादि सब मीठी तुंबी विवरण-तुलसी के कोमल कांडीय छोटे पौधे होते के समान होते हैं। फल बहत कड़वा होता है। यह इसका। हैं। जड़ के पास का कांड कुछ काष्ठीय होता है। पत्तियां वन्य भेद है। अत्यन्त सुगंधित होती हैं। इसके मुख्य दो भेद होते हैं। (भाव०नि०शाकवर्ग पृ०६८२) (१) श्वेत एवं (२) कृष्ण । काली तुलसी की डालियां कृष्णाभ होती हैं। पुष्पमंजरी शाखाओं पर निकलती है। तुलसी तुलसी के बारे में ऐसा भी विश्वास है कि जहां तुलसी के रुप तुलसी (तुलसी)तुलसी ठा०८/११७/१ प० १/४४/३ होते हैं, मच्छर भाग जाते हैं। जाडे के दिनों में फूल फल आते हैं। (वनौषधि निदर्शिका पृ० १८१) तुलसी के पर्यायवाची नाम यह क्षुप जाति की वनस्पति १ से २.५ फीट तक सुरसा तुलसी ग्राम्या, सुरभि बहुमञ्जरी। अपेतराक्षसी गौरी, भूतघ्नी देवदुंदुभिः ।।४५।।। ___ऊंची होती है और समस्त क्षुप से तीव्रगंध आती है। सुरसा, तुलसी, ग्राम्या, सुरभि, बहुमंजरी, र शाखायें सीधी और फैली हुई रहती हैं। पत्ते १ से २.५ इंच तक लंबे और अंडाकार तथा सुगंधित होते हैं। अपेतराक्षसी, गौरी, भूतघ्नी, देवदुंदुभि ये तुलसी के । शाखाओं के अंत में मंजरी लगती है। जिसके पत्ते हरे पर्यायवाची नाम हैं। (धन्व०नि० ४/४५ पृ० १६१) सफेदी लिये होते हैं उसको सफेद तुलसी और जिसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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