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________________ (xiv) गहरा है। उनका सुझाव और प्रोत्साहन मेरे लिए मूल्यवान रहा T ★ जैन विश्व भारती के पूर्व महामंत्री श्री झूमरमलजी बैंगाणी (बिदासर) की सेवा को भी मैं नहीं भुला सकता, जिन्होंने आयुर्वेद के अनेक ग्रंथ उपलब्ध कराए। अपने आयुर्वेदीय ज्ञान से शब्द निर्णय में सहयोगी बने हैं। * श्री नोरतनमलजी सुराणा (तारानगर) को औषधियों और वनस्पति नामों का अनुभव है। धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक के ६ भाग उपलब्ध कराए। ये ग्रंथ मेरे शोधकार्य में बहुत उपयोगी रहे। श्री सुराणा जी के सहयोग को मैं विस्मृत नहीं कर सकता । ★ श्री राजकुमार बैद (राजलदेसर) ने बंगला भाषा में प्रकाशित भारतीय वनौषधि के ६ भागों के ६८६ शब्दों का हिन्दी रूपान्तर कर मुझे दिया, जिससे चित्रों को पहचानने में सहयोग मिला। * इस आभार प्रदर्शन की परंपरा में मैं उन सब का आभारी हूं जिन्होंने मुझे वाचिक सहयोग भी दिया है। ★ शोध की दिशा में यह पहला प्रस्थान है। विकास के लिए अनंत आकाश सामने है। पाठक और समीक्षक असीम आकाश के अवगाहन की ओर गतिशील बन पाए तो प्रस्तुत प्रयास की सफलता असंदिग्ध है। मुनि श्रीचंद 'कमल' २८ अक्टूबर, १९६५ स्वास्थ्य निकेतन, लाडनूं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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