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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 117 निघंटु पृ० ६४१ में भी जव का फारसी नाम जवजओ है। वनस्पतियां सूख जाती हैं तब यह हराभरा रहता है। गुजराती भाषा में यवभवा नाम है। इससे लगता है जवजव शब्द जव का ही एक भेद है। भावप्रकाश में जव का भेद जइ धान्य किया है। अतियवो निःशूकः कृष्णारुणवर्णो यवः ।। तोक्यो हरितो निःशूकः स्वल्पो यवः जई इति प्रसिद्धः । अतियव शूकरहित काले तथा अरुण (लाल) रंग का होता है। तोक्य हरे रंग का शूकरहित छोटा जव होता है और जई इस नाम से लोक में प्रसिद्ध है। इसके (जव के) कई प्रकार पाये जाते हैं। जई (तोक्य) यह यव का भेद...या भारतीय ओट (Indian oat) जिसका लेटिन नामएह्वेना वाइझेंटिना (Ivenabyzantina) है, हो सकता है। (भाव. नि० धान्य वर्ग० पृ० ६४१) शारख पुष्प पांव जवसय जवसय (यवासक) जवासा प० १/३७/३ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में जवसय शब्द गुच्छवर्ग विवरण-इसके गुल्म छोटे-छोटे १ से १/२ हाथ के अन्तर्गत है। जवासा के पुष्प मंजरियों में आते हैं। ऊंचे, अनेक शाखाओं से युक्त कांटेदार होते हैं। पत्ते यवासक के पर्यायवाची नाम छोटे-छोटे चिकने आयताकार, रोमश, कुंठिताग्र तथा यासो यवासकोऽनन्तो, बालपत्रोऽधिकण्टकः।।। नीचे की ओर झुके हुए होते हैं। पत्रकोणों में सामान्य दूरमूलः समुद्रान्तो, दीर्घमलो मरुदभवः ।।२२।। शाखाओं के अतिरिक्त प्रायः १.५ इंच तक लंबे कांटे होते यास, यवासक, अनन्त, बालपत्र, अधिकण्टक, हैं। फूल वसंत में लाल रंग के १.५ इंच मंजरियों में आते दूरमूल, समुद्रान्त, दीर्घमूल, मरुद्भव ये यास के पर्याय हैं। फली एक इंच लंबी सीधी या टेढी तथा भालाकार धन्व०नि० १/२२ पृ० २२) होती है। यवासा के क्षुप से एक प्रकार का निर्यास अन्य भाषाओं में नाम निकलकर कुछ रक्ताभ या भूरापन लिये सफेद रंग के हि०-जवासा, यवासा। बं०-जवासा। म०- दानों के रूप में जम जाता है, जिसे यूनानी में तुरंजवीन जवासा, यवासा। गु०-जवासो। फा०-खारेशतर, नाम से बहुत व्यवहार में लाते हैं। शुतुरखार। अ०-अलगुल हाज। अंo-Arabian or (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग पृ० ४११) persian Manna Plant (अरेबियन या पशियन मन्नाप्लांट)। ले०-Alhagi Camelorum (अॅल्हागी कॅमेलोरम)। जवासा उत्पत्ति स्थान-यह दक्षिण महाराष्ट्र, गुजरात, जवासा ( ) जवासा प० १७/१२५ सिंध, बलचिस्तान, पंजाब, उत्तरप्रदेश तथा राजपताना विमर्श-हिन्दी भाषा, बंगभाषा और मराठी भाषा में (राजस्थान) में होता है। यह शुष्क ऊसर भूमि में या नदियों के किनारे पाया जाता है। ग्रीष्म में जब अन्य जवासा को जवासा कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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