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________________ (xij की भी अनुक्रमणिका है। किसी-किसी शब्द की बीस भाषाओं (बोलियों) में पहचान दी हुई है। वनस्पति के प्रकारों का वर्णन है। वनस्पति के शब्दों की समीक्षा पूर्ण रूप से की गई है। वर्णन संक्षेप में है पर सारभूत है। हिन्दी भाषा का वर्णन संस्कृत भाषा से प्रभावित है। * निघंटुआदर्श दो भागों में विभक्त है, पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध । संस्कृत भाषा के पर्यायवाची शब्द कम हैं। संस्कृतेतर भाषाओं में वनस्पति के शब्दों की पहचान भी है। वनस्पति के शब्दों का वर्णन संक्षेप में है। पुराणमत और नव्यमत भी दिए गए हैं। शब्दों की निरुक्ति भी है। अन्य ग्रन्थों की मान्यता की समीक्षा भी की गई है। * निघंटुशेष आचार्य हेमचन्द्र की कृति है। इसमें वृक्ष, लता आदि वर्गों का विभाजन आगम के शब्दों के निकट है। इसमें पर्यायवाची नामों को अलग-अलग दिखाया गया है। इसके लिए एक श्लोक को भी तीन-चार भागों में विभक्त किया है। पर्यायवाची नामों के लिए कोष्ठक में धन्वन्तरि आदि निघंटु को भी उद्धृत किया गया है। * धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक इसके छ: भागों में अकार से लेकर हकार तक के शब्दों का वर्णन है। प्रत्येक भाग में हिन्दी शब्दों की अनुक्रमणिका है और चित्र सूची भी है। प्रायः शब्दों के चित्र हैं। वनस्पति की पहचान के लिए चित्र उपयोगी हैं। यह एक प्रकार से वनस्पति कोश है। छ: भागों में हजार से अधिक वनस्पतियों की पहचान मिल जाती है। अनेक भाषाओं में शब्द की पहचान, वनस्पति का उत्पत्ति स्थान, वर्णन, गुणधर्म और प्रयोगों का विस्तार से विश्लेषण है। शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी संग्रह है। * वनौषधि निदर्शिका में वर्णन संक्षेप है। प्रकाशन आधुनिक है। अन्य भाषाओं में नाम नहीं है। * वनौषधि चंद्रोदय दस भागों में है। शब्दों की अनक्रमणिका भी है। शब्दों में हिन्दी भाषा उर्दू भाषा और अन्य भाषाओं का मिश्रण है। पर्यायवाची नाम कम है और वर्णन भी अधिक नहीं है। * मदनपालनिघंटु में पर्यायवाची नामों में कई नए नाम मिलते हैं। दूसरे निघंटु की अपेक्षा इसमें कई एक वनस्पतियों के पर्यायवाची नाम भी मिलते हैं। कालमान* प्रज्ञापना का कालमान ई.पू. दूसरी शताब्दि है। यह श्यामाचार्य की कृति है। इसमें वनस्पतिवाचक ४२१ शब्द संगृहीत हैं। * सुश्रुत और चरक में जितने शब्द हैं उनसे अधिक शब्द आगम में है। * निघंटुओं में हजार से भी अधिक शब्द मिलते हैं। * निघंटुओं में सबसे पुराना धन्वन्तरि निघंटु है। * कुछ लोगों (आचार्य प्रिय व्रत शर्मा) की मान्यता है कि धन्वन्तरि निघंटु का कालमान विक्रम की १०वीं से १३व सदी है। * इन्द्रदेव त्रिपाठी के अनुसार धन्वन्तरि निघंटु का कालमान विक्रम की पांचवीं या छठी सदी या इससे भी पूर्व हो सकता है। अशुद्ध अर्थ* आगमों की टीकाओं में वनस्पतिवाचक कुछेक शब्दों की संस्कृत छाया मिलती है। * हिंदी पाठकों के लिए सबसे पहले श्री अमोलक ऋषि संपादित आगम बतीसी उपलब्ध हुई। प्रयास स्तुत्य है। * उनके द्वारा संपादित प्रज्ञापना सूत्र में वनस्पतिवाचक शब्दों का अर्थ देखा । ऐसी अनुभूति हुई हिन्दी अर्थ यथार्थ से बहुत दूर चला गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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