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________________ 94 जैन आगम : वनस्पति कोश जाते हैं। किन्तु ठीक उपज नहीं होती। खजूर गाछ। म०-शिन्दी। क०-इचुली। ते०-इण्ढा चेटु, पेड्डयिटा। गु०-खजूर | फा०-तमररुतब, खुरमायहिन्दी । अ०-खुरमातर, रतबहिन्दी। अं०-Wild date tree (वाइल्ड डेट ट्री) ले०-Phoenix Sylvestris (फिनिक्स सिलहेट्रिस)। उत्पत्ति स्थान-इसके वृक्ष भारत में प्रायः सर्वत्र ही एवं जंगलों में स्वयमेव उपजते हैं। कहीं लगाये भी जाते हैं। सिन्ध में ये बहत होने से इसे सिन्धी कहते हैं। विवरण-इसका वानस्पतिक विवरण खजूर वृक्ष के अनुसार ही है। अन्तर इसका यही है कि इसके वृक्ष खजूर वृक्ष की अपेक्षा बहुत ऊचे (४० से ५० फुट तक) किन्त मोटाई में कम मोटे होते हैं। पत्ते अपेक्षाकत अधिक लम्बे, पतले एवं तीक्ष्ण नोंकदार होते हैं। फल ग्रीष्म ऋतु में पत्रदण्डों के मूल भाग से अनेक शाखायुक्त डंडियां निकलती हैं। इन्हीं डंडियों पर १ इंच लम्बे, गोल-गोल फल गुच्छों में आते हैं; जो पकने पर लालिमा युक्त नारंगी विवरण-फलादिवर्ग एवं नारिकेल कुल का यह रंग के हो जाते हैं। देहाती लोग इन फूलों को खूब खाते वृक्ष ताड़ या नारियल के वृक्ष के समान होता है। प्रकांड हैं। फलों में गुठली का ही विशेष भाग होता है। गूदा तो पर पत्रवृन्त के डंठल खजूरी वृक्ष के डंठल जैसे ही नीचे पर नाममात्र का थोड़ा होता है। इसे ही खाकर गुठली को फेंक देते हैं। गुठली या बीज की नोकें गोल एवं बीज से ऊपर तक लगे हुए रहते हैं। पत्ते खजूरी पत्र के समान के एक ओर गहरी लकीर सी तथा दूसरी ओर हल्की ही किन्तु कुछ बड़े होते हैं। फल भी खजूरी के फल से एवं अधूरी लकीर होती है। इन बीजों के गुणधर्म और बड़ा तथा मांसल या गूदेदार होता है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ३३२) प्रयोग खजूर के बीज जैसे ही हैं। खजूर के पेड़ का रस तो भारत में मुश्किल से प्राप्त होता है किन्तु इसके पेड़ से निकलने वाला रस यहां प्रचुरता से प्राप्त होता है। खज्जूरि इस रस को भी हिन्दी में खजूरी रस या ताड़ी तथा दक्षिण खजूरि (खर्जूरी) खर्जूरी में सिंधी कहते हैं। इससे गुड़, चीनी, सिरका, मद्य आदि भ० २२/१ जीवा० ३/५८१ जं० २/६ प० १/४३/२ प्रस्तुत किए जाते हैं। खज्जूरी (खजूरी) खजूरी इस वृक्ष का विशेष महत्त्व एवं प्रचार इससे प्राप्त खर्जूरी के पर्यायवाची नाम होने वाले रस के कारण बहुत बढ़ाचढ़ा हुआ है। है भी खर्जूरी तु खरस्कन्धा, कषायाः मधुराग्रजा। यह महान् उपयोगी, पौष्टिक एवं आरोग्यदायक पेय दुःप्रधर्षा दुरारोहा, निःश्रेणी स्वादुमस्तका।।४६।। पदार्थ। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ३३८,३३६) खरस्कन्धा, कषाया, मधुराग्रजा, दुःप्रधर्षा, दुरारोहा, निःश्रेणी, स्वादुमस्तका ये खजूरी के पर्यायवाची खज्जूरी वण नाम हैं। __(धन्व०नि० ५/४६ पृ० २३३) । खज्जूरीवण (खर्जूरी वन) खर्जूरी का वन अन्य भाषाओं में नाम जीवा० ३/५८१ हि०-खजूर, देशी खजूर, खिजूर | बं०-जांगलेर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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