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________________ 90 जैन आगम : वनस्पति कोश AGRAM पुष्पकाट ऊंचाई पर तथा चेनाव और झेलम नदियों के आसपास अलग होकर नहीं गिरते तथा वह मृगशृंग के समान होता के प्रदेशों में १०००० से १३००० फीट की ऊंचाई पर पाये है। (भाव०नि० पृ० ६१, ६२) जाते हैं। कोदूस कोदूस (कोरदूष) कोदों, एक जाति का कोदो। भ० २१/१६ प० १/४५/२ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में कोदूस शब्द धान्यवाची शब्दों के साथ है। धान्य के नामों व पर्यायवाची नामों में कोरदूष शब्द मिलता है। कोदूस शब्द के निकटवर्ती होने से लगता है संस्कृत का कोरदूस शब्द प्राकृत के शब्द कोदूस की ही छाया है। कोरदूष के पर्यायवाची नाम कोद्रवः कोरदूषश्च, कुद्दालो मदनाग्रजः । स च देशविशेषेण, नाना भेदः प्रकीर्तितः । ।१२८ / कोद्रव, कोरदूष, कुद्दाल और मदनाग्रज ये सब कोदों के नाम हैं। यह देश विशेष के अनुसार अनेक भेदों से कहा गया है। (राज० नि० १६/१२८ पृ० ५५३, ५५४) अन्य भाषाओं में नामविवरण-इसका क्षुप बहुत दृढ़ होता है। काण्ड हि०-कोदोधान, कोदव, कोदो। स्वावलम्बी ४ से ७ फीट ऊंचा, भद्दा, जड़ की ओर, छोटी बं०-कोदोआधान। म०-कोद्र, हरिक, कोद्रु । उंगली प्रमाण मोटा होता है। पत्ते कौशेय सदृश, विषम गु०-कोदरा। क०-हारक। ते०-अरिकेले । दन्तूर, खण्डित, आधारीय बहुत लंबे २ से ४ फीट ता०-वरगु। अ०-कोद्रु। फा०-कोदिरम। त्रिकोणाकार लम्बे, खण्डयुक्त सपंख डण्ठलवाले तथा ले०-Paspalum Scrobiculatum Linn (पास्पेलम् ऊपर के छोटे । फूल दृढ़ १ से १.५ इंच गोल विनाल स्क्रोकबिक्यूलेटम्) Fam, Grarnineae (ग्रेमिनी)। गुच्छेदार, गहरे नील बैंगनी रंग के या काले फल .३१ उत्पत्ति स्थान-सभी भागों में यह वन्य अथवा इंच तक लम्बे, दबे हुए, मुडे हुए चर्मलफल । मूल हलके कृषित रूप में होता है। मुरचई लाल या काले बादामी हलके, दृढ सीधे, १ से विवरण-कोदो एक प्रकार का तृणजातीय धान्य, ३ इंच लंबे, १ से १.५ इंच मोटे, छोटे-छोटे उभारों से वर्षाकाल के आरंभ ही में रोपण किया जाता है और युक्त, मोटे टुकड़े अन्दर से पोले, इससे ठीक कटे हुए आश्विन कार्तिक में काट लिया जाता है। इसका क्षुप पृष्ठ में ३ भाग स्पष्ट दिखाई देते हैं जिसमें से बाहरी वर्षाय. सीधा खडा एवं १.५ से २ फीट तक ऊंचा होता भाग अंगूठी की तरह गोल, बीच का काष्ठमय भाग कुछ है। इसके पत्ते पतले घास के समान लम्बे होते हैं। इसकी हलके रंग का तथा महीन किरणों के समान धारियों से मंजरी बाहर नहीं निकलती बल्कि सीकों के बीच में ही युक्त एवं अन्दर में मध्यभाग, भग्न छोटा तथा शृंगवत्। रहकर पक जाती है। इसके बीज सरसों के समान, गंध मधर, स्वाद कछ कडवा, इन्हीं मूलों का व्यवहार छिलका सहित काले रंग के और भसी निकलने पर औषध में किया जाता है। चक्रपाणि ने अच्छे कूठ की किंचित् पीलापन युक्त सफेद रंग के होते हैं। इस अन्न पहचान यह दी है कि उसे तोड़ने पर नीचे उसे कण में विशेषता यह है कि भसी सहित रखने से यह पचासों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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