SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 86 जैन आगम : वनस्पति कोश कुसुभ के कंटीले तथा बिना कांटे वाले ऐसे दो प्रकार के रुप है। होते हैं। इसके फूलों का वर्ण कुंकुम (केशर) जैसा होने कुसुंभ (कुसुम्भ) कुसुंभ का बीज, वरट्टिका, करें, वरें। . भ० २१/१६ प० १/४५/२ से इसे ग्राम्यकेशर कहते हैं। ये फूल स्वाद में कुछ कडुवे विमर्श-कुसुंभ शब्द का अर्थ कुसुम होता है, __होते हैं। इन पुष्पों के कारण ही इसके क्षुपों को कुसुम जिसके फूल रंगने के काम में आते हैं। प्रस्तुत प्रकरण ___फूल कहते हैं। इसमें जो डोंडी बडीसुपारी जैसी नोंकदार तथा में कुसुंभ शब्द धान्यवाचक है। कुसुंभ के बीज धान्य में कांटों से युक्त होती है, उन्हीं में केसरिया फूल तथा माने गए हैं इसलिए यहां कुसुंभ का बीज अर्थ ग्रहण किया छोटे-छोटे शंख जैसे चिकने, श्वेत बीज होते हैं। ये बीज जा रहा है। स्वाद में कुछ तिक्त तथा तैल से युक्त होते हैं। इन्हें भाषा संस्कृत नामकसम्भबीजं वरटा, सैव प्रोक्ता वरद्रिका। में बरे कहते हैं (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० २८८) कुसुम्भबीज, वरटा और वरट्टिका ये सब कुसुंभ बीज के संस्कृत नाम हैं। (भाक० नि० धान्यवर्ग० पृ० ६५६) अन्य भाषाओं में नाम कुहंडिया हि०-कुसुभ, कुसुम्भ, वरें। बं०-कुसुभ फूल। कुहंडिया (कूष्माण्डी) कुम्हडी, सफेद कदू। म०-करडई। गु०-कसुम्बो। क-कसुम्बे । रा०२८ जीवा० ३/२८१ ते०-लत्तुक, लक्क, बंगारमु, वंगारम, अग्निशिक्षा, कूष्माण्डी के पर्यायवाची नामकुसुम्बा, वित्तुलु। पं०-कूसम, कर्तुम, करर। कूष्माण्डी तु भृशं लध्वी, कर्कारुरपि कीर्तिता। उ०प्र०-बरे, करी। फा०-खश्कदाने, गुलेमश्कर । कूष्माण्डी और करुि कुम्हडी के संस्कृत नाम हैं। अ०-अखरीज झरतम। अं0-Safflower (सफ्फ्लावर) अत्यन्त लघु पेठे को कूष्माण्डी कहते हैं। Parrot seed (पॅरट्सीड) Bastard saffron (बॅस्टर्ड (भाव० नि० पृ०६८०) सॅफ्रॉन)। ले०-Carthamus tinctorius linn (कार्थमस् अन्य भाषाओं में नामटिंक्टोरियस् लिन०)। हि०-कुम्हरा, सफेद कदू । बं०-सादाकुम्हरा। उत्पत्ति स्थान-इस देश के प्रायः सब प्रान्तों में म०-कौला। ता०-सुरईकई। अ०-Vegetable Marइसकी खेती की जाती है। _row (बेजिटेबुल मॅरो) Field Pumpkin (फील्ड पम्पकिन)। विवरण-इसका क्षुप १ से ३ फीट ऊंचा होता है। ले०-Cucurbita pepo linn (कुकरविटा पेपो) Fam. पत्ते लम्बे किनारों पर कटे हुए नुकीले और कांटेदार होते Cucurbitaceae (कुकर विटेसी)। हैं। केसरिया लालरंग के पुष्प गोल, गुच्छों में आते हैं। उत्पत्ति स्थान-यह सभी प्रान्तों में कृषित अवस्था चतुष्कोणीय चर्मल फल आते हैं। बीज सफेद, चिकने में होता है। तथा शंख की आकृति के समान होते हैं । कृषिजन्य इसके विवरण-इसकी लता वर्षायु दृढ़, एवं खरदरी से अनेक प्रभेद पाये जाते हैं तथापि इनका वर्गीकरण दो रोमश होती है। पत्ते गोलाकार, अल्पखण्डित एवं वृन्त, वर्गों में किया जा सकता है। एक में कांटे होते हैं और तीक्ष्ण रोमश होते हैं। पुष्प पीले रंग के आते हैं। फल दूसरे में कांटे नहीं होते। कांटे वालों की अपेक्षा बिना कई प्रकार के किन्तु सामान्यतः नाशपाती के आकार वाले कांटेवाले के फूलों से बहुत उत्तम रंग निकलता है। कांटे या कुछ आयताकार होते हैं। इसका डण्ठल कड़ा, अनेक वाले पौधे तेल की दृष्टि से अच्छे समझे जाते हैं। गहरी धारियों से युक्त एवं फल के आधारीय भाग में फूला (भाव० नि० हरीतक्यादि वर्ग०पृ० ११२) हआ नहीं रहता। हरीतक्यादि वर्ग एवं मृगराज कुल की इस बूटी इसके अनेक प्रकार होते हैं। गद्दी हलके रंग की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy