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________________ 84 विवरण - इसका क्षुप झाड़ीदार आरोहणशील, पतला, धूसर, रोमश १२ से १८ इंच ऊंचा एवं मूल से अनेक पतली शाखाओं से युक्त होता है । पत्ते त्रिपत्रक एवं २ इंच लम्बे वृन्तयुक्त होते हैं। पत्रक पीताभ हरे, १.७५ इंच लम्बे, तिर्यक् अंडाकार एवं अग्र तीक्ष्ण और रोमश होता है। पुष्प छोटे पीताभ श्वेत रंग के आते हैं। फली चिपटी १.५ से २ इंच लम्बी, १/४ इंच चौड़ी तथा कुछ टेढी होती है। बीज ५ से ६ हलके लाल, काले, चितकबरे, चिपटे १/७ से १/४ इंच बड़े एवं चमकीले होते हैं। इसको विशेषरूप से घोड़ों को खिलाते हैं। इसको बिना दाल बनाये ही उपयोग में लाते हैं। गरीब इसको खाते हैं। (भाव० नि० धान्यवर्ग पृ० ६५१) .... कुलसी कुलसी ( ) भ० २१/२१ विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में कुलसी शब्द है । प्रज्ञापना (१/४४/३) में इसके स्थान पर तुलसी शब्द है। संभव है तुलसी का कुलसी लिखा गया हो या तुलसी का पर्यायवाची नाम कुलसी हो । निघंटुओं में और शब्दकोषों में कुलसी शब्द नहीं मिलता है। इसलिए यहां तुलसी शब्द ग्रहण कर रहे हैं। तुलसी (तुलसी) तुलसी । देखें तुलसी शब्द | Jain Education International .... कुवधा कुवधा ( > प० १/४०/२ विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में कुवधा शब्द है। आयुर्वेद कोषों में कुवधा शब्द नहीं मिलता है। पाठान्तर में कुवया शब्द है। उसका वनस्पति परक अर्थ मिलता है। इसलिए कुवया शब्द ग्रहण कर रहे हैं । कोषों में कुवकालुका शब्द मिलता है। इसका संक्षिप्तरूप कुवका है। कुवया शब्द वल्ली वर्ग के अन्तर्गत है। इसका क्षुप ६ से १२ इंच लम्बा होता है । कुवकालुका | स्त्री । घोलीशाके । रा०नि०व० ७ (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० २६६ ) जैन आगम वनस्पति कोश घोलीशाक के पर्यायवाची नाम घोला च घोलिका घोली, कलन्दुः कवलालुकम् ।।१४६ ।। घोला, घोलिका, घोली, कलन्दुः कवलालुक ये घोलीशाक के नाम हैं । (राज० नि० ७ / १४६ पृ० २१६ ) विमर्श - कोष में कुवकालुका शब्द घोलीशाक के अर्थ में दिया गया है और साथ में राजनिघंटु के वर्ग ७ का प्रमाण दिया गया है। राजनिघंटु में कवलालुक शब्द है संभव है, छपाई की अशुद्धि हो । अन्य भाषाओं में नाम हि० - बडीलोणा, लोणाशाक, कुल्फा । बं०बडणुनी । म० - घोल । गु० - लुणीम्होटो । फा० - खुल्फा, खुर्पा । अ० - बकुतुल हुनका । अंo - Garden purslane ( गार्डन पर्सलेन ) । ले० - Portulaca oleracealin (पोर्टुलेका ओलेरेसीया) Fam. Portulacaceae (पार्टुलेकेसी) । उत्पत्ति स्थान- भारत के उष्णप्रदेशों में प्रायः खादर या आर्द्रभूमि पर बहुत उपजते हैं तथा बागों में यह बोई जाती है। सीलोन में यह अधिक पाई जाती है। विवरण - यह अपने लोणिका कुल का एक प्रधान शाक है। बड़ी जाति को कुलफा और छोटी जाति को लोनिया कहते हैं। बड़ी जाति के कुलफे का वर्षायु क्षुप हरा या रक्ताभ रंग का रसपूर्ण ६ से १२ इंच लम्बा बिल्कुल चिकना होता है। पत्र वृन्तरहित १/२ से १.५ इंच लम्बे, गोलाकार, मांसल, रक्ताभ, किनारे युक्त होते हैं। स्वाद नमकीन और अम्ल होता है । पुष्प वर्षाकाल में पीतवर्ण के वृन्तरहित शाखाओं के अग्रिम भाग पर निकलते हैं। कहीं-कहीं ये पुष्प वसंत और ग्रीष्म में प्रस्फुटित होते हैं। फल या डोडी अण्डाकार या शुंडाकार प्रायः शीतकाल में निकलती है। डोडी के अनेक बीज दाने जैसे होते हैं। मूल बड़ी की ४ इंच से १ फुट लम्बी पेन्सिल जैसी मोटी, उपमूलयुक्त एवं स्वाद में अप्रिय होती है । (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० २८२ ) कुविंदवल्ली कुविंदवल्ली (कोविदवल्ली) तिलक तिलिया, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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