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________________ 80 जैन आगम : वनस्पति कोश कुतुम्ब के पर्यायवाची नाम कुम्भयोनि द्रोणपुष्पी, द्रोणा छत्रकुतुंबकः ।।६६३।। (धन्वन्तरि वनौषाधि विशेषांक भाग २ पृ० ४३३,४३४) कौण्डिन्योथ महाद्रोणस्तथा द्रोणकुतुम्बकः वृषाकारः श्वसनकः, श्वसनःस्यात् कुसुम्भकः ।।६६४ कुडुंबय कुम्भयोनि, द्रोणपुष्पी, द्रोणा, छत्रकुतुम्बक, कौण्डिन्य, कुडुंबय (कुटुम्बक) भूतृण |प०१/४८/४३ उत्त०३६/६८ महाद्रोण, द्रोणकुतुम्बक, वृषाकार, श्वसनक, श्वसन और कुसुम्भक ये पर्याय द्रोणपुष्पी के हैं। कुटुम्बकः ।पु। भूतृणे। (वैद्यकशब्दसिन्धु पृ०२८२) (कैयदेव० नि० ओषधिवर्ग. पृ० १२३) अन्य भाषाओं में नाम कुणक्क हि०-गुमा, गोमा, दडधल, गुलडोरा, दनहली, कुणक्क ( ) प० १/४७ मोढ़ापानी बं०-बड़ धलघसा घसघस, हलकसा । म० विमर्श-उपलब्ध निघंटुओं और आयुर्वेद के कोशों तुम्बा, गुमा, कुंभा, शेतकुंभा । गु०-कुबो । ले०-Leucas में कुणक्क शब्द का वनस्पतिपरक अर्थ नहीं मिला है। Cephalotes (ल्युकस सिफेलोटस)। उत्पत्ति स्थान-इसके क्षुप भारत में प्रायः सर्वत्र खेतों में तथा जूनी दीवालों या खंडहरों में विशेषतः दक्षिण कुत्थुभरिय में, एवं बंगाल, बिहार, उड़ीसा, पंजाब में अधिकता से कुत्थंभरिय (कुस्तुम्बरी) धनियां भ० २२।३ पाये जाते हैं। देखें कुत्थंभरी शब्द। विवरण-गुडूच्यादि वर्ग एवं नैसर्गिक क्रमानुसार तुलसी कुल का यह वर्षायु क्षुप वर्षा ऋतु (कहीं जलाशय के समीप सब ऋतुओं) में प्रायः आधे से १.५ या ३ फुट कुत्थंभरी तक ऊंचा पाया जाता है। इसकी मूल कुछ श्वेत रंग की कुत्युंभरी (कुस्तुम्बरी) धनियां प० १/३६/२ तुलसी जैसी, २ से ६ इंच लंबी, स्वाद में चरपरी होती कुस्तुम्बरी के पर्यायवाची नामहै। पत्र समवर्ती, १ से २ इंच लम्बे, आधे से एक इंच कुस्तुम्बरी वेषणाग्रया, कटुभद्रा!िकाल्लका ।।११६३ ।। चौडे तुलसी पत्र जैसे, अनीदार, कंगूरेदार, रोमश, स्वाद धनिका धानिका धान्यं, धानी धाना वितुन्नकम्। में कडुवे एवं गंध तुलसीपत्र जैसी होती है। शाखायें धानेयं धान्यका छत्रा, हृद्यगन्धा च वेषणा /११६४।। चतुष्कोण रोमश (सूक्ष्म श्वेत रोमयुक्त) तथा पुष्प शाखा कुस्तुम्बरी, वेषणाग्रया, कटुभद्रा, आद्रिका, अल्लका, की प्रत्येक गांठ पर पुष्प गुच्छों में श्वेत छोटे-छोटे गोल धनिका, धानिका, धान्य, धानी, धाना, वितुन्नक, धानेय १ से २ इंच व्यास के कोण पुष्पों से घिरे हुए होते हैं। धान्यका, छत्रा, हृद्यगंधा और वेषणा ये पर्याय कुस्तुम्बरी तथा पुष्प गुच्छ के ऊपर प्रायः दो पत्तियां निकलती हुई के हैं। (कैयदेव० नि०ओषधि वर्ग० पृ० २२०) होती हैं। उक्त पुष्पगुच्छ में ही इसका बीजकोष या फल अन्य भाषाओं में नामहाता है। पुष्प के विकसित होने पर शीघ्र ही पंखुड़ियां हि०-धनियां । बं०-धने। म०-धने. कोर्थिवीर. झडकर पुष्पाभ्यन्तर कोष के निम्न भाग में एक सूक्ष्म ४ धणे गु०-धाना, धाणा, कोथमीर। क०-कोथंबुरी, विभागों वाला हरा चमकीला फल आता है। पकने पर कोथम्बरी, हविज। ते०-कोत्तिमिरि, धनियल। इसके ये ४ विभाग ही बीजों में परिवर्तित हो जाते हैं। ता०-कोट्टमल्लि कोत्तमल्ली। सिन्ध०-धान्। पुष्प प्रायः शीतकाल में आते हैं। ये आकार में द्रोण (दोन फा०-कजबुरा, कजबुरह। अंo-Coriander fruit या प्याला) सदृश होने के कारण इसे द्रोणपुष्पी कहते (कोरियअण्डर फुट)। ले०-Coriandrum Sativum linn Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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