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________________ ( 94 ) ... मद, विषय, कषाय, निद्रा-विकथा ये अशुभयोग आश्रव के भेदों में हैं। इनमें अप्रशस्त लेश्याए होती है। ये अशुभ योग रूप आस्रव छ? गुणस्थान तक है। आचार्य हेमचन्द्र ने भगवान महावीर की स्तुति में कहा है प्रतिक्षणोत्पाद-विनाशयोगि, स्थिरैकमध्यक्षमपीक्षमाणः । जिन ! त्वादाज्ञानवन्यते यः स बातकीनाथः पिशाचरीना ।। अर्थात्-हे जिन ! हर वस्तु प्रत्येक समय में उत्पाद, विनाश और स्थिर स्वभाव वाली है। इसको प्रत्यक्ष देखते हुए भी जो अज्ञानी आपकी आज्ञा का उल्लंघन करते हैं, वे लोग वात रोग से पीड़ित है या फिर भूतों से घिरे हुए हैं। जैन दर्शन सामंजस्यवादी दर्शन है। यह सभी विचारधाराओं में सामंजस्य स्थापित कर चलता है। वह किसी भी विचार को एकान्ततः स्वीकार या अस्वीकार नहीं करता। बृहत्कल्प भाष्य में श्रुत-स्वाध्याय को सबसे बड़ा तप कहा है। नवि अस्थि नवि होही सज्झाय समं तवोकम्मं । -गाथा ११६६ पांच अप्रशस्त भावना है, यथा-(१) कांदी भावना (२) देवकिल्विषी भावना (३) आभियौगिकी भावना (४) आसुरी भावना व (५) संमोही भावना। इन अप्रशस्त भावनाओं में प्रायः अप्रशस्त लेश्या होती है, अतः इन भावनाओं को छोड़कर प्रशस्त लेश्या के द्वारा प्रशस्त भावना का अवलम्बन लें। छेदन का सामान्य अर्थ है-टुकड़े करना तथा भेद का सामान्य अर्थ हैविदारण करना। कर्मों की स्थिति का घात करना यानी उदीरणा के द्वारा कर्मों की स्थिति का अल्पीकरण करना है छेदन की तरह भेदन की परिभाषा यह है कर्मों का रसघात । जिस व्यक्ति के मन में यह प्रश्न उठता है कि में भवसिद्धि ( भव्य ) है या नहीं वह निसंदेह भवसिद्धि है। जिसके मन में कभी यह प्रश्न पैदा नहीं होता वह अभवसिद्धि है। आध्यात्म जाति, वर्ण, वर्ग, लिंग, भाषा आदि से सर्वथा अतीततत्त्व है । बिना किसी भेद भाव के वह समूची मानव जाति के लिए श्रेयपथ प्रशस्त करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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