SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पद्मलेशी जीव पद्मलेशी में उत्पन्न हो तो शुक्ललेशी जीव शुक्ललेश्या में उत्पन्न हो तो ( 92 ) ५३-१५ कर्मभूमिज मनुष्य, ५ संज्ञी तियंच पंचेन्द्रिय के पर्याप्त अपर्याप्त लौकान्तिक, दूसरा किल्विषी सानतकुमार, माहेन्द्र ब्रह्मदेव के पर्याप्त ३ एवं ५३ ६२ - १५ कर्मभूमिज मनुष्य, ५ संज्ञी तियंच पंचेन्द्रिय Jain Education International के पर्याप्त अपर्याप्त २१ देव (छट्ट े से सर्वार्थ सिद्ध तक व तीसरा किल्विषी के पर्याप्त एवं ६२ ६६-१५ कर्मभूमिज मनुष्य, ५ संज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रिय ६ लौकान्तिक दूसरा किल्विषी व सनतकुमार से ब्रह्मदेव के पर्याप्तअपर्याप्त एवं ६६ ८४-१५ कर्मभूमिज मनुष्य, ५ संज्ञी तियंच पंचेन्द्रिय, तीसरा किल्विषी वछट्टो से सर्वार्थसिद्ध देव तक के पर्याप्त अपर्याप्त एवं ८४ अस्तु चैतसिक विचार के अनुरूप पौद्गलिक विचार होते हैं अथवा पौद्गलिक विचार के अनुरूप चैतसिक विचार होते हैं । यह एक जटिल प्रश्न है । इसके समाधान के लिए लेश्या की उत्पत्ति पर ध्यान देना आवश्यक हो जाता है । आचार्य अभयदेव ने कहा है शैलेशी करणे योगनिरोधाद् नो एजते । – ठाण० स्था ३ । उ ३ । सू १६० । टीका अर्थात् योग का निरोध होने के कारण शैलेशीकरण की अवस्था में ( चौदहवें गुणस्थान में ) एजनादि क्रिया नहीं होती है । पचीस बोल की चरचा में लेश्या के विषय में इस प्रकार उल्लेख है १ - एक लेश्या किस में २--दो लेश्या किसमें ३- तीन लेश्या किसमें ४- चार लेश्या किसमें ५- पांच लेश्या किसमें ६ --- छ: लेश्या किसमें गुणस्थान में तेरहवें तीसरी नारकी में ( कापोत नील ) अनिकाय में ( कृष्ण-नील कापोत ) पृथ्वीकाय में ( पद्म शुक्ल बाद ) सन्यासी की गति देव में प्रथम पांच लेश्या सर्व जीवों में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy