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________________ ( 89 ) बासठिया के थोड़े में लेश्या सम्बन्धित विवेचन भी है | १०२ बोल है । लेश्या का विवेचन इस प्रकार मिलता है । जीव के भेद १४ सलेशी में कृष्णलेशी में १४ नोललेशी में १४ कापोतलेशी में १४ तेजुलेशी में पद्मलेशी में शुक्ललेशी में अलेशी में गुणस्थान योग १३ प्रथम १५ ६ प्रथम १५ ६ प्रथम १५ ६ प्रथम १५ ३ (३,१३,१४वां) ७ प्रथम १५ २ (१३,१४वां) ७ प्रथम १५ २ (१३,१४वां) १३ प्रथम १५ १ (चौदहवां) १ चौदहवां नहीं उपयोग भाव १२ ५ १० केवलज्ञान ५ केवलदर्शन बाद 19 Jain Education International 39 इकवीस द्वार के 37 ५ ५ ५ ५ ५ For Private & Personal Use Only आत्मा IS IS लेश्या और जीव भेदों की अपेक्षा गति- आगति गति का अर्थ है - जाना तथा आगति का अर्थ किस गति से आया है । ८ ८ 15 15 5 15 15 ८ ८ 33 १२ २ केवलज्ञान ३. केवलदर्शन ( उदय, क्षायिक कषाय तथा पारिणामिक ) बाद ८ सलेशी, कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी में लब्धि ५, वीर्य ३ ( पंडित, बालपंडित, बाल ), दृष्टि ३, भवि अभवि दोनों है, कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक दोनों है । दंडक --- सलेशी में २४, कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी में २२ दंडक ( ज्योतिषी वैमानिक बाद), तेजुलेशी में दंडक १८ (तीन विकलेन्द्रिय नारकी, अग्निकाय - वायुकाय वाद ) तथा पद्मलेशी व शुक्ललेशी में ३ दंडक २०व, २१वां, २४वां, तिथंच पंचेन्द्रिय, तियंच मनुष्य तथा वैमानिक देव । श्री मज्जाचार्य ने भ्रमविध्वंसनम् के लेश्याधिकार में छद्मस्थ तीर्थङ्कर में कषाय कुशील नियण्ठा कहा है तथा कषाय कुशील नियंठा ( निम्नन्थ ) में छ: लेश्या कही है । आवश्यक सूत्र अध्ययन ४ में छः लेश्या के लक्षणों का भी विवेचन है । योग जीव के ५६३ भेदों की तालिका इस प्रकार है- - १४ भेद - सात नारकी के पर्याप्त अपर्याप्त | www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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