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________________ ( 86 ) ४-जिस प्रकार अष्ट कर्मों के उदय से संसारस्थत्व तथा असिद्धत्व होता है। उसी प्रकार अष्ट कर्मों के उदय से जीव लेश्यत्व को प्राप्त होता है। भाव लेश्या जीवोदय निष्पन्न भाव है। अतः कर्मों के उदय से जीव भाव लेश्याएं होती है। हरिभग्रसूरि तथा मलयगिरि की यह मान्यता रही है कि लेश्या द्रव्य योग वर्गणा के अन्तर्गन्त है क्योंकि योग के होने पर लेश्या होती है, योग के अभाव में नहीं। न्याय की भाषा में लेश्या और योग में परस्पर अन्वय और व्यतिरेक भाव है। परन्तु व्यक्तिगत भाव से किसी भी योग का लेश्या के साथ अन्ययव्यतिरेक नहीं है। अन्तरालगति ( अर्थात एक भव से दूसरे भाव में जाने के बीच के काल को अन्तराल गति कहते हैं ) में केवल कार्मण काय योग होता है और योग नहीं होते हैं। छओं लेश्याओं में किसी एक योग का सद्भाव अवश्य रहता है। कहा है उच्चते इह योगे सति लेश्या भवति । योगाभावे च न भवति, ततो योगेन सहान्वयव्यतिरेकदर्शनात् योगनिमित्ता लेश्येतिनिश्चीयते। ___ उड़ती हुई या चलती हुई मक्षिका-मच्छर में सिर्फ एक औदारिक काय योग होता है-लेश्या का सद्भाव है। कषायोदय में अनुरंजित योग प्रवृत्ति ही ( लेश्या ) स्थिति पाक में सहायक बनती है। लेश्या की प्रवृत्ति में किसी न किसी प्रकार का काय योग अवश्य होता है। उपाध्याय श्री विनय विजयजी ने इस पक्ष का समर्थन किया है 'योग परिणामो लेश्या' । भारतीय दर्शन के महान् चिन्तनकार युगप्रधान आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने कहा है लेश्या की शुद्धि हुए बिना जातिस्मृति ज्ञान नहीं हो सकता। लेश्या की शुद्धि हुए बिना अवधिज्ञान नहीं हो सकता। लेश्या की शुद्धि हुए बिना मनःपर्यव ज्ञान नहीं हो सकता और लेश्या की शुद्धि हुए बिना केवल ज्ञान नहीं हो सकता। जो भी अन्तर्ज्ञान उत्पन्न होता है, वह लेश्या की विशुद्धि में ही होता है । लेश्या की शुद्धि के बिना आनन्द का अनुभव नहीं हो सकता। ध्यान आदि के द्वारा जो हम पराक्रम करते हैं कि भावों का संशोधन हो, लेश्या १. प्रज्ञापना पद १७ । टीका पृ० ३३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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