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________________ ( 63 ) ३२ -- यह पारिणामिक भाव है । ३३- इसका संस्थान अज्ञात है । ३४- देश बंध तथा सर्व बंध का लेश्या सम्बन्धी पाठ नहीं है । जीव के प्रयोग में आने वाले पुद्गलों स्कंधों की आठ वर्गणाए ं हैं ५ - कार्मणवर्गणा १ - औदारिकवर्ग ना २- - वैक्रियवर्गणा ३—आहारकवर्गणा ६ – मनोवर्गणा ४- तेजसवर्गा ७ – वचनवर्गणा ८ - श्वासोच्छ्रासवर्गणा इन आठ वर्गणाओं में से तैजसवर्गा के साथ द्रव्यलेश्या का सम्बन्ध है । भावलेश्या क्या है ? १ – भावलेश्या जीव परिणाम है 1 ( देखें विषयांकन ४१ ) २ – भावलेश्या अरूपी है । यह अवर्णी, अगंधी, अरसी तथा अस्पर्शी है । ( '४२ ) ३- भावलेश्या अगुरुलघु है । ( ४३ ) ४ - विशुद्धता - अविशुद्धता के तारतम्य की अपेक्षा से इसके असंख्यात स्थान है । Jain Education International ( '४४ ) ५-- -यह जीवोदय निष्पन्न भाव है । ( ४६ '१ ) ६- आचार्यों के कथनानुसार भाव लेश्या क्षय-क्षयोपशम, उपशम भाव भी है । ( *४६°२ ) ७- प्रथम की तीन लेश्याएं अधर्म लेश्याएं कही गयी है तथा पीछे की तीन धर्म लेश्याएं कही गई है । ( पृ० १६ ) ८- प्रथम की तीन भावलेश्या संक्लिष्ट है तथा पश्चात् की तीन भावलेश्या असं क्लिष्ट है | ( पृ० १७ ) E - प्रथम की तीन भावलेश्या अप्रशस्त है तथा पश्चात् तीन भाव लेश्या प्रशस्त है । ( पृ० १८ ) १० - प्रथम की तीन भावलेश्या दुर्गति की हेतु कही गई है तथा पश्चात् की तीन भावश्या सुगति की हेतु कही गई है । ११ - परिणाम की अपेक्षा प्रथम की तीन भाव लेश्या अविशुद्ध है तथा पश्चात् की तीन भावलेश्या विशुद्ध है । ( पृ० १७ ) १२ - नव पदार्थ में भावलेश्या - जीव आस्रव तथा निर्जरा है । १३ – आस्रव - योग आस्रव है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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