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________________ ४८० लेश्या-कोश जो सलेशी है वह सयोगी है तथा जो अलेशी है वह अयोगी है। योग और लेश्या का पारस्परिक सम्बन्ध क्या है-आगमों के आधार पर यह मिश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता है। द्रव्यलेश्या के पुद्गल कैसे ग्रहण किये जाते हैं, यह भी एक विवेचनीय विषय है। द्रव्य मनोयोग तथा द्रव्य वचनयोग के पुद्गल काययोग के द्वारा ग्रहण किये जाते हैं। क्या यह कहा जा सकता है कि द्रव्य लेश्या के पुद्गल भी काययोग के द्वारा ग्रहण किये जाते हैं। ... · जब जीव मम-अयोगी तथा वचन-अयोगी होता है उस समय वह किय दंश में भी अलेश्यत्व को प्राप्त होता है या नहीं-यह विचारणीय विषय है। यदि नहीं हो तो यह सिद्ध हो जाता है कि लेश्या का काययोग के साथ सम्बन्ध है और जब अर्धकाययोग का निरोध होता है तभी जीव अलेश्यत्व को प्राप्त नहीं होता है परन्तु लेश्या से होने वाला कर्मबंध रुक जाता है। लेश्या की दो प्रक्रियायें हैं-(१) द्रव्यलेश्या के पुद्गलों का ग्रहण तथा (२) उनका प्रायोगिक परिणमन । जब योग का निरोध प्रारम्भ होता है उस समय से लेश्या द्रव्यों का ग्रहण भी बंद हो जाना चाहिये तथा योग निरोध की सम्पूर्णता के साथ-साथ पूर्वकाल में गृहीत तथा अपरित्यक्त द्रव्यलेश्या के पुद्गलों का प्रायोगिक परिणमन भी सम्पूर्णतः बन्द हो जाना चाहिये। '६६ ३२ लेश्या और कर्म__कर्म और लेश्या शाश्वत भाव हैं। कर्म और लेश्या पहले भी हैं, पीछे भी हैं, अनानुपूर्वी हैं। इनका कोई क्रम नहीं है। न कम पहले है, न लेश्या पीछे है ; न लेश्या पहले है, न कर्म पीछे। दोनों पहले भी हैं, पीछे भी हैं, दोनों शाश्वत भाव हैं, दोनों अनानुपूर्वी हैं। दोनों में आगे-पीछे का क्रम नहीं है ( देखो ६४ ) । भावलेश्या जीवोदय निष्पन्न है ( देखो .०५.५२.५)। द्रव्यलेश्या अजीवोदयनिष्पन्न है (.०५.५१.१४)। यह जीवोदय-निष्पन्नता तथा अजीवोदयनिष्पन्नता किस-किस कर्म ले उदय से हैं-यह पाठ उपलब्ध नहीं हुआ है। तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य का कहना है कि कृष्णादि तीन अप्रशस्त लेश्या-मोहकर्मोदयनिष्पन्न हैं तथा तेजो आदि तीन प्रशस्त लेश्या-नामकर्मोदयनिष्पन्न हैं। विशुद्ध होती हुई लेश्या कर्मों की निर्जरा में सहायक होती है ( देखो -६६२)। टीकाकारों का कहना है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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