SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 639
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या-कोश ४७७ लेश्या भी प्रखर, तेज वा तापवाली होती है। ऐसा उपयुक वर्णन से प्रतीत होता है। 'EE २६ तेजससमुद्घात और तेजोलेश्या-लब्धि तैजससमुद्घातस्तेजोलेश्याविनिर्गमनकाले तैजसनामकर्म पुद्गलपरिशातहेतुः । -पण्ण० प ३६ । गा १ । टीका असुरकुमारादीनां दशानामपि भवनपतीनां तेजोलेश्यालब्धिभावात् आद्याः पंच समुद्घाताः x x x पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकानामाद्याः पंच, केषांचित्तेषां तेजोलब्धेरपि भावात्, मनुष्याणाम् सप्त, मनुष्येषु सर्वसम्भवात, व्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकानामाद्याः पंच, वैक्रियतेजोलब्धिभावात् । -पण्ण० ३६ । सू१ । टीका तेजोलेश्या लब्धि वाला जीव ही तेजससमुद्घात करने में समर्थ होता है। तियंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य तथा देवों में तेजोलेश्या-लब्धि होती है । तेजससमुद्घात करने के समय तेजोलेश्या निकलती है तथा उसके निर्गमन काल में तेजस नामकर्म का क्षय होता है। 'EE'३० लेश्या और कषाय कषायपरिणामश्चावश्यं लेश्यापरिणामाविनाभावी, तथाहिलेश्यापरिणामः सयोगिकेवलिनमपि यावद् भवति, यतो लेश्यानां स्थितिनिरूपणावसरे लेश्याध्ययने शुक्ललेश्याया जघन्या उत्कृष्टा च स्थितिः प्रतिपादिता मुहुत्तन तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुव्वकोडी उ। नवहिं वरिसेहिं ऊणा नायव्वा सुक्कलेसाए ।। इति सा च नववर्षोंनपूर्वकोटिप्रमाणा उत्कृष्टा स्थितिः शुक्ललेश्यायाः सयोगिकेवलिन्युपपद्यते, नान्यत्र, कषायपरिणामस्तु सूक्ष्मसंपरायं यावद् भवति, ततः कषायपरिणामो लेश्यापरिणामाऽविनाभूतो . नवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy