SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 617
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या-कोश *६* १६ लेश्या और तत्त्व (क) भाव लेश्या और तत्व भाव लेस्या कृष्णादिक तीनू ; छः द्रव्य मोहि जीव । नव तत्व मांहि जीव अरु आसव, जोग-आसव कहीव ||५|| मिथ्यात अव्रत प्रमाद कषाय, ए चिहुं लेस्या नांय | जोग - आसव पिण असुम जोगमें, असुभ -लेस्या तीनू आय || ६ || तीनू जोगां में किसो जोग है ? सुणियै तेहनो न्याय । मन-वचन-काया का जोग त्रिहु ? सलेसी का जिनराय ||७| -झीणीचरचा ढाल १ प्रथम तीन भाव लेश्याएं छः द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव पदार्थों में जीव और आस्रव — इन दो पदार्थों में समाविष्ट होती है । आस्रव में केवल योगआस्रव में समाविष्ट होती है । ૪૧ मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद और कषाय- इन चार आस्रवों में लेश्या का समावेश नहीं होता है । योग आस्रव के दो प्रकार हैं- शुभयोग और अशुभयोग | प्रथम तीनों लेश्याएं अशुभ है, अतः वे अशुभयोग में ही समाविष्ट होती है । मन, बचन और काय -- इन तीनों योगों को सलेशी ( लेश्या सहित ) कहा है । अतः अशुभलेश्याओं का समावेश तीनों योगों में होता है । - जयाचार्य ने आस्रव शब्द के स्थान पर - आश्व, आस्व, आस और आस्रव-इन चार शब्दों का प्रयोग किया है । जब जीव एक योनि से मरण, च्यवन, उद्वर्तन करके अन्य योनि में जाता है तब जाने के पथ में जितने समय लगते हैं उतने समय में संसारी जीव सलेशी होता है । मरण के समय जीव द्रव्य लेश्या के जिन पुद्गलों से ग्रहण करता है उसी लेश्या में जाकर जन्म - उत्पाद करता है और तदनुरूप ही उसकी भावलेश्या होती है अतः इस अंतराल में सम्भवतः वह द्रव्य लेश्या के नये पुद्गलों का ग्रहण नहीं करता है लेकिन मरण च्यवन के समय द्रव्य लेश्या के जिन पुद्गलों को ग्रहण किया था, वे अवश्य ही उसके साथ रहते हैं । (ख) द्रव्य लेश्या और तव द्रव्य लेख्या छहु षट् द्रव्य मांहि, नव तत्व मांहि अजीव पदारथ, Jain Education International पुद्गल कहिये ताहि । पुन पाप बंध नांहि ||४|| -झीणीचरचा ढाल १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy