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________________ ४२६ लेश्या - कोश -३ सुभ भाव-लेस्या नै धर्म लेख्या कही, कर्म कटै इण न्याव । सुभ भाव लेस्या नै कर्म-लेस्या कही, पुन्य बंधे उदै भाव ||२७|| खायक खयोपशम भाव थी, पुन्य नहिं बंधै लिगार | उदै - -भाव सूं कर्म कटै नहि, तिण सूं सुभ लेस्या भाव च्यार ॥२८॥ सुभ-भाव-लेस्या नै धर्म लेस्या कही, तिण सं खायक खयोपशम भाव । धर्म लेस्या सुं कर्म निर्जरा कटै छे, कही शुभ भाव लेश्याओं से कर्मों की क्षय होता है, अतः उन्हें धर्म लेश्या कहा गया है । उनसे पुण्य का बन्ध होता है और वे औदयिक भाव में समाविष्ट होती है अतः उन्हें कर्म लेश्या कहा गया है । इण न्याव ||२६|| -भीणीचरचा, ढाल १ क्षायिक और क्षायोपशमिक भाव से पुण्य का अंश मात्र भी बंध नहीं होता और औदयिक भाव से अंश मात्र भी कर्म का क्षय नहीं होता । ( शुभ लेश्याओं से पुण्य का बन्ध और कर्म का क्षय दोनों होते हैं । ) अतः वे चार भावों में समाविष्ट होती हैं । शुभ भाव लेश्या को धर्म लेश्या कहा गया है, क्षायोपशमिक भावों में समाविष्ट होती है । उनसे अतः उनका निर्जरा पदार्थ में समावेश किया गया है । -४ सुभ भाव लेस्या नै कर्म लेस्या कही, तिण सूं कर्म लेस्या सुं कर्म बंधै इण कारण Jain Education International अतः वे क्षायिक और कर्मों का क्षय होता है उदै भाव कहिवाय । 121 छे, आस्रव शुभ भाव लेश्याओं को कर्म लेश्या कहा गया है अतः वे औदयिक भाव में समाविष्ट होती है । उनसे शुभ कर्म का बंध होता है इस दृष्टि से उनका आस्रव पदार्थ में समावेश किया गया है । For Private & Personal Use Only मांय ||३०|| -झीणीचरचा, ढाल १ www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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