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________________ लेश्या - कोश ४१९ प्रथम डाकू का प्रस्ताव रहा कि जो कोई मनुष्य या पशु अपने सामने आवे - उन सबको मार देना चाहिए । द्वितीय डाकू ने कहा— पशुओं को मारने से क्या लाभ ? मनुष्यों को मारना चाहिए जो अपना विरोध कर सकते हैं । तृतीय डाकू ने सुझाया - स्त्रियों का हनन मत करो, दुष्ट पुरुषों का ही हनन करना चाहिए । चतुर्थ डाकू का प्रस्ताव था कि प्रत्येक पुरुष का हनन नहीं करना चाहिए ? जो पुरुष शस्त्र सज्जित हों उन्हीं को मारना चाहिए । पंचम डाकू बोला-शस्त्र सहित पुरुष भी यदि अपने को देखकर भाग जाते हैं तो उन्हें नहीं मारना चाहिए । सशस्त्र पुरुष जो सामना करे उनको हो मारो | छठे डाकू ने समझाया कि अपना मतलब धन लूटने से है तो धन लूटें, मारें क्यों ? दूसरे का धन छीनना तथा किसी को जान से मारना - दोनों महादोष हैं । अतः अपने धन को लूट लें लेकिन मारें किसी को नहीं । उपरोक्त दोनों दृष्टान्त लेश्या परिणामों को समझने के लिये स्थूल दृष्टान्त हैं । ये दोनों दृष्टान्त दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में प्रचलित हैं । अतः प्रतीत होता है कि ये दृष्टान्त परम्परा से प्रचलित हैं । वर्णन लेश्या से मिलती भावना महाभारत के शान्ति पर्व की "वृत्रगीता" में मिलती है जहाँ जगत् के सब जीवों को वर्ण - रंग के अनुसार छः भेदों में विभक्तः किया गया है । ९८ जेनेतर ग्रन्थों में लेश्या के *६८१ महाभारत में- समतुल्य षड् जीववर्णाः परमं प्रमाणं कृष्णो धूम्रो नीलमथास्य मध्यम् । रक्त पुनः सह्यतरं सुखं तु हारिद्रवर्ण सुसुखं च शुक्लम् ॥ - महा० शा० पर्व | अ २८० । श्लो ३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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