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________________ लेश्या-कोश ४१७ जागृत हुई। छओं बन्धुओं के मन में लेश्या जनित अपने-अपने परिणामों के कारण भिन्न-भिन्न विचार जागृत हुए और उन्होंने फल खाने के लिये अलग-अलग प्रस्ताव रखे, उनसे उनकी लेश्या का अनुमान किया जा सकता है। प्रथम बन्धु का प्रस्ताव था कि कौन पेड़ पर चढ़कर तोड़ने की तकलीफ करे तथा चढ़ने में गिरने की आशंका भी है। अतः सम्पूर्ण पेड़ को ही काट कर गिरा दो और आराम से फल खाओ। द्वितीय बन्धु का प्रस्ताव आया कि समूचे पेड़ को काटकर नष्ट करने से क्या लाभ ? बड़ी-बड़ी शाखायें काट डालो। फल सहज ही हाथ लग जायेंगे तथा पेड़ भी बच जायेगा। तीसरा वन्धु बोला कि बड़ी डालें काटकर क्या लाभ होगा? छोटी शाखाओं में ही फल बहुतायत से लगे हैं उनको तोड़ लिया जाय ! आसानी से काम भी बन जायेगा और पेड़ को भी विशेष नुकसान न होगा । ___ चतुर्थ बन्धु ने सुझाव दिया कि शाखाओं को तोड़ना ठीक नहीं। फल के गच्छे ही तोड़ लिये जायें। फल तो गुच्छों में ही हैं और हमें फल ही खाने हैं। गुच्छे तोड़ना ही उचित रहेगा। पंचम बन्धु ने धीमे से कहा कि गुच्छे तोड़ने की भी आवश्यकता नहीं है। गुच्छे में तो कच्चे-पक्के सभी तरह के फल होंगे। हमें तो पक्के मीठे फल खाने हैं। पेड़ को झकझोर दो परिपक्व रसीले फल नीचे गिर पड़ेगे। हम मजे से खा लेंगे। छठे बंधु ने ऋजुता भरी बोली में सबको समझाया क्यों बिचारे पेड़ को काटते हो, बाढ़ते हो, तोड़ते हो, झकझोरते हो! देखो ! जमीन पर आगे से ही अनेक पके पकाये फल स्वयं निपतित होकर पड़े हैं। उठाओ और खाओ। व्यर्थ में वृक्ष को कोई क्षति क्यों पहुंचाते हो। पंथाओ परिभट्ठा छप्पूरिसा अडवि मज्झपारंमि । जम्बूतरुस्स होट्ठा परोप्परं ते विचितेति ॥१॥ निम्मूल खंधसाला गोच्छे पक्के य पडियसडियाइ। जह एएसिं भावा, तह लेसाओ वि णायव्वा ।। -जीवा० पृ० ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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