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________________ लेश्या-कोश ४०५ हिंसानंद, अनृतानंद, स्तेयानन्द और पारिग्रहानंद-ये चारों रौद्रध्यान अति कृष्ण, नील और कापोतलेश्या वालों के होते हैं। यह रौद्रध्यान कृष्णलेश्या के वल कर संयुक्त है। और नरकपात के फल से चिह्नित है और पंचम गुणस्थान पर्यन्त कहा गया है। इस ध्यान में प्रमाद की अधिकता है । इस ध्यान में कृष्ण, नील और कापोत की तीव्रता है। नोट-पांचवे गणस्थान के आगे यह ध्यान भी बताया गया है। यद्यपि श्रमणोपासक में आत-रौद्रध्यान होता है परन्तु शुक्लध्यान नहीं है । (झ) कृष्णलेश्याद्धताः पापा रौद्रध्यानैकभाविता । भवन्ति क्षेत्रदोषेण सर्वे ते नारका खला ।। -ज्ञान प्रक ३६ । श्लो ६६ ( नारकी ) कृष्ण लेश्या के कारण उद्धत है, पाप रूप है और एक रौद्र ध्यान के भावने वाले हैं एवं क्षेत्र के दोष से वे सब ही नारकी दुष्ट होते हैं । '६५.३ आर्तध्यान तदेतच्चतुर्विधमार्त कृष्णनीलकापोत लेश्या बलाधानम् अज्ञानप्रभवं पौरुषेयपरिणामसमुत्थं पापप्रयोगाधिष्ठानं परिभोगप्रसंगं नानासंकल्पा सङ्ग धर्माश्रय परित्यागिकषायाश्रयोपस्थानम् अनुपशमप्रवर्द्धनं प्रमादमूलमकुशलकर्मादानं कटुकविपाकासवेद्य तिर्यग्भवगमनपर्यवसानम्। -राज० अ६ । सू ३३ उन्मार्गदेशना मार्गप्रणाशो मूढचित्तता। आर्तध्यानं सशल्यत्वं मायारम्भपरिग्रहो ॥२॥ शीलवते सातिचारे नीलकापोतलेश्यता । अप्रत्याख्यानाः कषायस्तिर्यगायुष आश्रवाः॥२६।। -योशा० प्रका ४ । श्लो ७८ टीका में अनन्तदुःखसंकीर्णमस्य तिर्यग्गतेः फलम् । -ज्ञान० । प्रक २५ । इलो ४२ । पूर्वार्ध x x x ‘अट्टण तिरिक्खगई रुदभाणेण गम्मती नरयं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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