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________________ लेश्या-कोश ३८९ [ इस पाठ में भूल मालूम होती है। यद्यपि हमें सभी प्रतियों में एक-सा ही पाठ मिला है, हमारे विचार में शेष की तरफ का पाठ निम्न प्रकार से होना चाहिये क्योंकि यहाँ पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में गर्भज पुरुष तथा संमूच्छिम दोनों सम्मिलित हैं। गुणीजन इस पर विचार करें। 'काऊलेस्साओ संखेज्जगुणाओ, नीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ, काऊलेस्सा असंखेज्जगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया।' हमने अर्थ इसी आधार पर किया है। ] पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक शुक्ललेशी सबसे कम, तिथंच स्त्री शुक्ललेशी उनसे संख्यातगुणा, पं० ति० पदमलेशी उनसे संख्यातगुणा, स्त्री तिर्यंच पद्मलेशी उनसे संख्यातगणा, पं. ति• तेजोलेशी उनसे संख्यातगणा, तिथंच स्त्री तेजोलेशी उनसे संख्यातगणा, तिथंच स्त्री कापोतलेशी उनसे संख्यातगणा, तिर्यच स्त्री नीललेशी उनसे विशेषाधिक, तियंच स्त्री कृष्णलेशी उनसे विशेषाधिक, पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक कापोतलेशी उनसे असंख्यातगणा, पं० ति० नीललेशी उनसे विशेषाधिक तथा पं० ति० कृष्णलेशी उनसे विशेषाधिक होते हैं । ६१.२० तिर्यचयोनिकों तया पंचेन्द्रिय तिर्यच स्त्रिमों में : एएसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियाणं, तिरिक्खजोणिणीण य कण्हलेसाणं जाव सुक्कलेसाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा ४ ? गोयमा ! जहेव नवमं अप्पाबहुगं तहा इमं पि, नवरं काऊलेसा तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा । एवं एए दस अप्पाबहुगा तिरिक्खजोणियाणं । -पण्ण० प १७ । उ २ । सू १६ । पृ० ४४० तिर्यचयोनिक तथा गर्भज पंचेन्द्रिय तिय च स्त्रियों में कौन-कौन अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक है-इस सम्बन्ध में ·६१.१६ में जैसा कहा गया है वैसा कहना चाहिए। लेकिन कापोतलेशी तिर्य चयोनिक जीव अनंतगुणा कहना चाहिए। टीकाकार ने पूर्वाचार्यों द्वारा उक्त दो संग्रह गाथाओं का उल्लेख किया है-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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