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________________ ३५८ लेश्या-कोश एवं काऊलेस्सेहि वि सयं कण्हलेस्ससयसरिसं । --भग० श ३५ । श २ से ४ । पृ० ६२६ कृष्णलेशी कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेन्द्रिय का उपपात औधिक उद्दशक ( भग० श ३५ । श १ । उ १ ) की तरह जानना चाहिए। लेकिन भिन्नता यह है कि वे कृष्णलेशी हैं। वे कृष्णलेशी कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेन्द्रिय जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तमुहर्त तक होते हैं। इसी प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में जानना चाहिए। बाकी सब यावत् पूर्व में अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं-वहाँ तक जानना चाहिए । इसी प्रकार सोलह युग्म कहने चाहिए। प्रथम समय के कृष्णलेशी कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेन्द्रिय का उपपात प्रथम समय के उद्देशक ( भग० श ३५ । श १ । उ २) की तरह जानना चाहिए। लेकिन वे कृष्णलेशी है बाकी सब वैसे ही जानना चाहिए। जिस प्रकार औधिक शतक में ग्यारह उद्देशक कहे वैसे ही कृष्णलेशी शतक में भी ग्यारह उद्देशक कहने चाहिए। पहले, तीसरे, पाँचवें के गमक एक समान है। बाकी आठ के गमक एक समान हैं। लेकिन चौथे, छ8, आठवें, दशवें उद्देशक में देवों का उपपात नहीं होता है। नीललेशी एकेन्द्रिय महायुग्म शतक के कृष्णलेशी एकेन्द्रिय महायुग्म शतक के समान ग्यारह उद्द शक कहने चाहिए। ___ कापोतलेशी एकेन्द्रिय महायुग्म शतक के कृष्णलेशी एकेन्द्रिय महायुग्म शतक के समान ग्यारह उद्देशक कहने चाहिए । कण्हलेस्सभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कओ (हिंतो) उववज्जति० ? एवं कण्हलेस्सभवसिद्धियएगिदिएहि वि सयं बिइयसयकण्हलेस्ससरिसं भाणियव्वं । . एवं नीललेस्सभवसिद्धियएगिदियएहि वि सयं । एवं काऊलेस्सभवसिद्धियएगिदियएहि वि तहेव एक्कारसउद्देसगसंजुत्तं सयं । एवं एयाणि चत्तारि भवसिद्धियसयाणि । चउसु वि सएसु सव्वे पाणा जाव उव वन्नपुवा ? नो इणट्ठ सम । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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