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________________ ३५४ लेश्या-कोश . इसी प्रकार शुक्लपाक्षिक के भी चार उद्देशक कहने चाहिए। यावत बालुकाप्रभा पृथ्वी के कापोतलेशी शुक्लपाक्षिक क्षुद्रकल्योज नारकी कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् पर प्रयोग से उत्पन्न नहीं होते हैं-तक जानना चाहिए । ८६.२ सलेशी क्षुद्रयुग्म नारकी का उद्वर्तन खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! अणंतरं उठवट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववज्जति ? किं नेरइएस उववज्जति ? तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति ? उठवट्टणा जहा वक्कंतीए । ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उव्वति ? गोयमा ! चत्तारि वा अट्ट वा बारस वा सोलस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उव्वति । ते णं भंते ! जीवा कहं उव्वति ? गोयमा! से जहा नामए पवए-एवं तहेव । एवं सो चेव गमओ जाव आयप्पओगेणं उन्वट्ट ति, नो परप्पओगेणं उव्वति । ___ रयणप्पभापुढविखुड्डागकड० ? एवं रयणप्पभाए वि, एवं जाव अहेसत्तमाए (वि)। एवं खुड्डागतेओगखुड्डागदावरजुम्मखुड्डागकलिओगा, नवरं परिमाणं जाणियव्वं, सेसं तं चेव । - कण्हलेन्सकडजुम्मनेरइया०—एवं एएणं कमेणं जहेव उववायसए अट्ठावीसं उद्देसगा भणिया तहेव उव्वट्टणासए वि अट्ठावीसं उद्देसगा भाणियवा निरवसेसा, नवरं 'उव्वति' त्ति अभिलावो भाणियव्वो, सेसं तं चेव । -भग० श ३२ । उ १ से २८ । पृ० ६१२, १३ __ ८६.१ में जैसे उपपात के २८ उद्देशक कहे उसी प्रकार उद्धर्तन के २८ उद्देशक कहने चाहिए लेकिन उपपात के स्थान पर उद्धर्तन कहना चाहिए। ८७ सलेशी महायुग्म जीव [ इस प्रकरण में महायुग्म राशि जीवों का विवेचन किया गया है। महायुग्म राशि के सोलह भेद होते हैं, यथा-(१) कृतयुग्म कृतयुग्म, (२) कृतयुग्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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