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________________ लेश्या - कोश '८६ सलेशी क्षुद्रयुग्म जीव [ युग्म शब्द से टीकाकार अभयदेव सूरि ने 'राशि' अर्थ लिया है – 'युग्म - शब्देन राशयो विवक्षिताः । राशि की समता - विषमता की अपेक्षा युग्म चार प्रकार का होता है, यथा— कृतयुग्म, ज्योज, द्वापरयुग्म तथा कल्योज । जिस राशि में चार का भाग देने से शेष चार बचे उस राशि को कृतयुग्म कहते हैं जिस राशि में चार का भाग देने से तीन बचे उसको श्योज कहते हैं ; जिस राशि में चार का भाग देने से दो बचे उसको द्वापरयुग्म कहते हैं तथा जिस राशि में चार का भाग देने से एक बचे उसको कल्योज कहते हैं । ; ३४९ अन्य अपेक्षा से भगवती सूत्र में तीन प्रकार के युग्मों का विवेचन है, यथाक्षुद्रयुग्म, (श ३१, ३२), महायुग्म ( श ३५ से ४० ) तथा राशियुग्म ( श ४१ ) । सामान्यतः छोटी संख्या वाली राशि को क्षुद्रयुग्म कहा जा सकता है । इसमें एक से लेकर असंख्यात तक की संख्या निहित है । महायुग्म बृहद् संख्या वाली राशि का द्योतक है तथा इसमें पाँच से लेकर अनंत तक की संख्या निहित है तथा इसमें गणना के समय और संख्या दोनों के आधार पर राशि का निर्धारण होता है । राशियुग्म इन दोनों को सम्मिलित करती हुई संख्या होनी चाहिए तथा इसमें एक से लेकर अनंत तक की संख्या निहित है । क्षुद्रयुग्म में केवल नारकी जीवों का अट्ठारह पदों से विवेचन हैं । महायुग्म में इन्द्रियों के आधार पर सर्व जीवों ( एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय ) का तैंतीस पदों से विवेचन है। राशियुग्म में जीव-दंडक के क्रम से जीवों का तेरह पदों से विवेचन है । इस प्रकरण में क्षुद्रयुग्मराशि नारकी जीवों का नौ उपपात के तथा नौ उद्वर्तन ( मरण ) के पदों से विवेचन किया गया है ; तथा विस्तृत विवेचन औधिक क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के पद में है । अवशेष तीन युग्मों में इसकी भुलावण है तथा जहाँ भिन्नता है वहाँ भिन्नता बतलाई गई है । इसमें भग० श २५ । उ८ की भी भुलावण है । Jain Education International (१) कहाँ से उपपात, (२) एक समय में कितने का उपपात, (३) किस प्रकार से उपपात, (४) उपपात की गति की शीघ्रता, (५) परभव - आयु के बंध का कारण, (६) परभव-गति का कारण, (७) आत्मऋद्धि या परऋद्धि से उपपात, (८) आत्मकर्म या परकर्म से उपपात, (६) आत्मप्रयोग या परप्रयोग से उपपात । इस प्रकार उद्वर्तन ( मरण) के भी उपर्युक्त नौ अभिलाप समझने चाहिए । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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