SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या-कोश ३३९ गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सणिभूया य, असणिभूयाय । तत्थ णं जे ते सष्णिभूया ते णं महावेयणा । तत्थ णं जे ते असण्णिभूया ते णं अप्पवेयणतरागा । से तेण णं गोयमा ! एवं वुश्चइ - नेरइया नो सव्वे समवेयणा | — भग० श १ । उ २ । सू ७५ से ७८ ४- सभी नारकी समान लेश्या वाले नहीं है । क्योंकि नारकी दो प्रकार के होते हैं, यथा- - पूर्वोपपन्नक तथा पश्चादुपपन्नक । इनमें जो पूर्वोपपन्नक है वे विशुद्धश्यावाले और इनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं वे अविशुद्धलेश्यावाले हैं । इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सभी नारकी समानलेश्यावाले नहीं है । ५- सभी नारकी समान वेदना वाले नहीं है । क्योंकि नारकी दो प्रकार के होते हैं, बथा - संज्ञीभूत और असंज्ञीभूत । इनमें जो संज्ञीभूत हैं वे महावेदनावाले हैं और इनमें जो असंज्ञीभूत हैं वे ( अपेक्षाकृत ) अल्पवेदनावाले हैं । इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सभी नारकी समान वेदनावाले नहीं हैं । '६ – नेरइया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? गोयमा ! नो इणट्ठ े समट्ठे । सेकेणणं भंते! एवं वुञ्चइ - नेरइया नो सव्वे समकिरिया ? गोयमा ! नेरइया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, सम्मामिच्छदिट्ठी । तत्थ णं जे ते सम्मदिट्ठी तेसि णं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया । तत्थ णं जे ते मिच्छदिट्टी तेसि णं पंच किरियाओ कज्जंति, तं जहा – आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अप्पश्चक्खाणकिरिया, मिच्छादंसणवत्तिया । एवं सम्मामिच्छदिट्टीणं पि । से तेण ेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - नेरइया नो सव्वे समकिरिया । - भग० श १ । उ२ । सू ७६ ८० ६- सभी नारकी समान क्रियावाले नहीं हैं। क्योंकि नारकी तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा - ( १ ) सम्यग्दृष्टि, (२) मिथ्यादृष्टि और (३) सम्यग मिथ्यादृष्टिवाले । इनमें जो सम्यग्दृष्टि है, उनके चार क्रियाएं कही गई है, यथा- Jain Education International For Private & Personal Use Only • www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy