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________________ ३२६ लेश्या-कोश इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों के सस्बन्ध में कहना चाहिए। इसी प्रकार अपकायिक जीवों में चतुरिन्द्रिय जीवों तक कहना चाहिए । परन्तु जिसके जितनी लेश्या हो उतनी लेश्या अल्पऋद्धि-महाऋद्धि पद कहना चाहिए । पंचेन्द्रिय तिथंच, पंचेन्द्रिय तियंच स्त्री, संमुच्छिम तथा गर्भज सब जीवों में अल्पऋद्धि-महाऋद्धि पद कहना चाहिए। यावत् तेजोलेशी वैमानिक सबसे अल्पऋद्धिवाले तथा शुक्ललेशी वैमानिक सबसे महाऋद्धिवाले होते है। कई आचार्य कहते हैं कि ऋद्धि के आलापक चौवीस दण्डकों में ही कहने चाहिए। ज्योतिषी देवों में केवल एक तेजोलेश्या होने के कारण तुलनात्मक प्रश्न नहीं बनता है। कृष्णलेशी द्वीपकुमार से नीललेशी द्वीपकुमार महाऋद्धिवाला, नीललेशी द्वीपकुमार से कापोतलेशी द्वीपकुमार महाऋद्धिवाला, कापोतलेशी द्वीपकुमार से तेजोलेशी द्वीपकुमार महाऋद्धिवाला होता है। कृष्णलेशी द्वीपकुमार सबसे अल्पऋद्धिवाला तथा तेजोलेशी द्वीपकुमार सबसे महाऋद्धिवाला होता है। ___ इसी प्रकार उदधिकुमार, दिशाकुमार, स्तनितकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, वायुकुमार तथा अग्निकुमार के विषय में वैसा ही कहना चाहिए, जैसा द्वीपकुमार के विषय में कहा है। ८२ सलेशी जीव और बोधि सम्मईसणरत्ता, अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा । इय जे मरंति जीवा, तेसिं सुलहा भवे बोही ।। मिच्छादंसणरत्ता, सनियाणा कण्हलेसमोगाढा । इय जे मरंति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोही ॥ -उत्त० अ ३६ । गा २६४, २६५ । पृ० १०६० सम्यग्दर्शन में अनुरक्त, निदान रहित, शुक्ललेश्या में अवगाढ़ होकर जो जीव मरते हैं वे परभव में सुलभबोधि होते हैं । मिथ्यादर्शन में रत, निदान सहित, कृष्णलेश्या में अवगाढ़ होकर जो जीव मरते हैं वे परभव में दुर्लभबोधि होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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