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________________ लेश्या-कोश ३०५ तथा अष्टकर्मों का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था। पापकर्म तथा अष्टकर्म के अलग-अलग नौ दण्डक कहने चाहिए। अनंतरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया पावं कम्मं कहिं समजिणिंसु, कहिं समायरिंसु ? गोयमा ! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होजा, एवं एत्थ वि अट्ठ भंगा । एवं अनंतरोववनगाणं नेरइया(ई) जस्स जं अत्थि लेस्सादीयं अणागारोवओगपज्जवसाणं तं सव्वं एयाए भयणाए भाणियव्वं जाव वेमाणियाणं, नवरं अणंतरेसु जे परिहरियव्वा ते जहा बंधिसए तहा इहं वि । एव नाणावरणिज्जेण वि दंडओ, एवं जाव अंतराइएणं निरवसेसं । एसो वि नवदंडगसंगहिओ उद्देसओ भाणियव्वो। __ एवं एएणं कमेणं जहेव बंधिसए उद्देसगाणं परिवाडी तहेव इहं वि अट्टसु भंगेसु नेयव्वा । नवरं जाणियन्वं जं जस्स अत्थि तं तस्स भाणियव्वं जाव अचरिमुद्देसो। सव्वे वि एए एक्कारस उद्देसगा। -भग० श २८ । उ २ से ११ । पृ० १८६-८७ सलेशी अनंतरोपपन्न नारकी जीवों ने पापकर्म का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था। यावत् सलेशी अनंतरोपपन्न वैमानिक देवों ने पापकर्म का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था। जिसमें जितनी लेश्या होती है उतने ही पद कहने चाहिए। पापकर्म, ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय कर्म के नौ दण्डक निरवशेष कहने चाहिए। इस प्रकार नव दण्डक सहित उद्देशक कहने चाहिए। इस प्रकार क्रम से सलेशी परंपरोपपन्न यावत् सलेशी अचरम जीवों के नव उद्देशक ( मोट ११ उद्देशक ) कहने चाहिए। जिस जीव में जितनी लेश्या हो, उतने पद कहने चाहिए। विवेचन-देवों में एकवचन तथा बहुवचन की अपेक्षा से लोभोपयोग आदि के निम्नलिखित प्रतिलोभ भंग २७ होते हैं-( देखो पाठ ७३.१२ ) असंयोगी १ भंग सभी लोभी अर्थात् सर्वलोभोपयोगवाले । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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